ॐ सांई राम जी
श्री गुरु राम दास जी – साखियाँ - भाई आदम को
पुत्र का वरदान
भाई आदम सिख की बात मानकर पत्नी को साथ लेकर गुरु के चक्क आ गया| भाई आदम जंगल से रोज दो गठरी लकड़ी लाता और लंगर में दे देता और एक अपने घर में जमा करता| एक दिन सर्दी के मौसम में वर्षा के कारण सूखी लकड़ी कही न मिली| तब भाई आदम ने गुरु जी को खुशी प्रदान करने के लिए अपने घर की सारी सूखी लकड़ी जरूरतमंदों में बाँट दी| सर्दी से ठिठुर रहें लोग सूखी लकड़ी जलाकर खुश हो गए| गुरु जी भाई आदम की मिल-बाँट कर प्रयोग करने वाली प्रवृति को देखकर प्रशंसा करने लगे| संगते भी बहुत खुश थी| गुरु जी ने भाई आदम को बुलाया और कहा सिखा! गुरु नानक जी की संगत तेरे ऊपर खुश हुई है| तुम अपने मन का मनोरथ बताओ, जो पूरा किया जा सके| परन्तु भाई आदम संकोच कर गए और कहने लगे महाराज! मुझे दर्शन दो यही मेरा मनोरथ है| गुरु जी ने तीन बार पूछा और तीनों बार ही आदम ने "दर्शन दो"का वरदान माँगा| तब अन्तर्यामी गुरु ने कहा - भाई तुम कल अपनी पत्नी को साथ लेकर आना और फिर जिस मकसद से तुमने गुरु घर की सेवा की वह आकर बताना| आपका मनोरथ गुरु नानक जी पूरा करेगें| इसके पश्चात आदम ने डेरे में जाकर सारी बात पत्नी को बताई और दूसरे दिन पत्नी को साथ लेकर गुरु दरबार पर आ गया| गुरु जी ने वचन किया कि आज अपना मनोरथ निसंकोच बताओ| पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा महाराज! हमें पुत्र की दात प्रदान करो| यही मनोरथ के साथ हम गुरु दरबार में आए थे|
गुरु जी ने ध्यान में बैठकर वचन किया कि हम आपकी श्रद्धा, भक्ति और निष्काम सेवा पर बहुत खुश हैं| गुरु नानक जी कि कृपा से आपके घर प्रतापी पुत्र होगा| उसका नाम भगतु रखना| अब आप अपने घर जाओ और गुरु यश का आनंद प्राप्त करो| गुरु की आज्ञा के अनुसार भाई आदम अपने गाँव चला गया और उनके घर लड़के ने जन्म लिया और जिसका नाम भगतु ही रखा गया| भाई भगतु जी बड़े नाम रसिक और करनी वाले प्रतापी पुरुष हुए हैं| इस प्रकार आदम और उसकी पत्नी का गुरु दर पर विश्वास और बढ़ गया|