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साखी गरुड़ की

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ॐ श्री साँई राम जी



साखी गरुड़ की

पुरातन काल में एक ऋषि कश्यप हुए हैं, वह गृहस्थी थे तथा उनकी दो पत्नियां थीं - बिनता और कदरू| कदरू के गर्भ में से सांप पैदा होते थे जिनकी कोई संख्या नहीं थी, पर बिनता के कोई पुत्र पैदा नहीं होता था| वह बहुत दुखी थी| उसने अपने पति के आगे अपना दुःख प्रगट किया| कश्यप ने कहा-तुम्हारे पुत्र तभी हो सकता है, यदि यज्ञ किया जाए| बिनता ने कहा-तुम्हारे पुत्र तभी हो सकता है, यदि यज्ञ किया जाए| बिनता ने कहा-फिर यज्ञ करो| यज्ञ का प्रबन्ध किया गया| देवराज इन्द्र जैसे देवता यज्ञ में आए| उस यज्ञ के साल बाद बिनता के गर्भ से दो पुत्र पैदा हुए जो अग्नि तथा सूर्य के समान बहुत तेज़ वाले थे| एक का नाम गरुड़ तथा दूसरे का अरूण रखा गया| जब दोनों बड़े हुए तो गरुड़ को विष्णु जी ने अपना यान बना लिया, उस पर सवारी करने लगे| गरुड़ सब पक्षियों से तेज़ दौड़ता था| अरूण सूर्य का रथवान बन बैठा क्योंकि वह बहुत महाबली था, सूर्य उस पर प्रसन्न रहता था|

अरूण तथा गरुड़ के बाद बिनता के चार पुत्र पैदा हुए| जिनके नाम यह हैं - ताख्रया, अरिष्ट नेमि, आरूनि तथा वारूण| ये छ: पुत्र बड़े सूझवान तथा बली थे, पर सांपों से इनको सदा खतरा रहता था| कदरू चाहती भी थी कि बिनता के पुत्र मार दिए जाएं, पर उसको कोई बहाना तथा समय हाथ नहीं आता था| महाभारत में कथा आती है कि बिनता तथा कदरू एक दिन किसी बात पर आपस में वाद-विवाद करने लग पड़ी कि सूर्य का घोड़ा काला है या सफेद| कदरू कहती थी काला तथा बिनता रहती थी सफेद| चालाकी से कदरू ने सफेद घोड़े को काला साबित करके बिनता को दिखा दिया| शर्त के अनुसार बिनता पुत्रों सहित सौतन की गुलाम हो कर रहने लगी| पराधीन मनुष्य तो स्वप्न में भी सुखी नहीं होता, फिर सौतन की पराधीनता तो वैसे ही बुरी होती है| बिनता बहुत दु:खी हुई| बिनता ने कदरू से पूछा कि क्या कोई मार्ग है जिससे मैं स्वतन्त्र हो सकती हूं? कदरू ने उत्तर दिया - 'यदि स्वर्ग (इन्द्र लोक) में से अमृत का घड़ा मंगवा कर मुझे दे दो तो तुम तथा तुम्हारे पुत्र भी स्वतन्त्र हो जाएंगे, क्योंकि मैं अमृत अपने पुत्र सांपों को पिला दूंगी, वह अमर हो जाएंगे, उनको कोई नहीं मार सकेगा|'

सौतन की इस मांग को बिनता ने अपने पुत्र गरूड़ के आगे प्रगट किया| बलशाली गरूड़ बोले-'हे माता! तुम्हारे सुखों के लिए मैं जान कुर्बान करने के लिए तैयार हूं| आज ही इन्द्र लोक पहुंचता हूं तथा अमृत का घड़ा लेकर आता हूं| यह कौन-सी कठिन बात है|'माता को इस तरह धैर्य देकर गरूड़ इन्द्रलोक चला गया| अमृत के घड़े को देवता भला कैसे उठाने देते| गरूड़ तथा इन्द्र की लड़ाई हो गई| कई दिन महा भयानक युद्ध लड़ते रहे| अंत में इन्द्र हार गया तथा गरूड़ जीत गया| गरूड़ की बहादुरी को देख कर इन्द्र उस पर प्रसन्न हो गया, खुशी में कहने लगा - 'कोई वर मांगना हो तो मांग लो|'उस समय गरूड़ ने यह वर मांगा, 'एक तो मैं प्रभु विष्णु जी की सेवा करता रहूं तथा दूसरा सांप मेरी खुराक हो जाएं|'गरूड़ की यह मांगें सुन कर इन्द्र ने यहीं वर दिए| वर देने के पश्चात पूछा, 'एक तरफ तुम सांपों को अमृत दे कर अमर कर रहे हो, दूसरी तरफ कहते हो वह मेरी खुराक बन जाएं, यह क्या मामला है?'गरूड़ बोला - 'मैंने अमृत दे कर माता के वचन की पालना करनी है तथा उनको उनकी सौतन से स्वतन्त्र करवाना है| जब मेरा धर्म पूरा हो जायेगा बेशक आप घड़ा वापिस मंगवा लेना| मैंने इसका क्या करना है| हां ऐसे करो! दूत मेरे साथ भेजो! जब मेरी माता यह अमृत का घड़ा मेरी सौतेली माता कदरू के हवाले करे तो उस समय वह जहां उस घड़े को रखे वहां से आपके दूत उस घड़े को उठा कर भाग आएं|'

गरूड़ की इस योजना को देवराज इन्द्र मान गया| इन्द्र ने उसी समय अपने चार दूत गरूड़ के पीछे मृत्यु लोक में भेज दिए| गरूड़ अमृत का घड़ा लेकर घर पहुंचा| अपनी मां को सौंपकर खुशियां प्राप्त कीं| बिनता ने वही घड़ा जा कर कदरू को सौंप दिया तथा कदरू ने घड़ा एक स्थान पर रखकर बिनता को स्वतन्त्र कर दिया| उधर सांपों के अमृत घड़े के पास पहुंचने से पहले ही इन्द्र के दूत घड़ा उठा कर रफ्फू चक्कर हो गए| कदरू के कहने पर सांप अमृत पीने गए| उनको घड़ा न मिला, पर जिस जगह घड़ा रखा हुआ था, उसी जगह को जीभों से चाटने लग गए| उनकी जीभें छिल गईं| उस दिन से सांपों की नस्ली तौर पर जीभ छिलनी शुरू हो गई|

रामायण में लिखा है कि जब श्री रामचन्द्र जी मेघनाद से युद्ध कर रहे थे तो मेघनाद ने दैवी शक्ति के बल से श्री रामचन्द्र जी को सेना सहित नागों के फन से धरती पर गिरा लिया| उस समय देवर्षि नारद तथा भगवान विष्णु ने गरूड़ को भेजा| गरूड़ ने जाकर सारे नाग खा लिए तथा श्री रामचन्द्र जी को सेना सहित मरने से बचा लिया|

हिन्दू लोग गरूड़ को भगवान का रूप भी मानते हैं| यह पक्षियों का राजा तथा विष्णु का सेवादार है| इसके दर्शन करने बहुत शुभ हैं|



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