श्री गुरु अंगद देव जी -साखियाँ - हरीके गाँव का अहंकारी चौधरी
गुरु जी अपने पुराने मित्रों को मिलने के लिए कुछ सिख सेवको को साथ लेकर हरीके
गाँवपहुँचे| गुरु जी की उपमा सुनकर बहुत से लोग श्रधा के साथ दर्शन करने आए| हरीके केचौधरी ने अपने आने की खबर पहले ही गुरु जी को भेज दी कि मैं
दर्शन करने आ रहा हूँ| गाँव का सरदार होने के कारण उसमे अहम का भाव था| गुरु जी ने उसके बैठने के लिएपीहड़ा रखवा दिया व चादर बिछवा दी| चौधरी ने पीहड़े पर बैठना अपना अपमान समझा| वहपलंघ पर गुरु जी के साथ सिर की ओर बैठ गया| गुरु जी से वार्तालाप करके वह तो चलागया पर सिख शंका ग्रस्त हो गये और कहने लगे महाराज! चौधरी
तो आप से भी ऊँचा होकरआपके साथ ही बैठ गया इसमें कितना अहंकार का भाव है, जिसे बड़ो का आदर करना नहींआता|
सिखों की बात सुनकर गुरु जी कहने लगे जो बड़ो का निरादर करता है वहछोटा ही रहता है, और जो बड़ो का आदर करता है वह अपने आप ही बड़ा हो जाता है| गुरुजी के ऐसे वचनों से सरदार बड़ा होते हुए भी छोटा हो गया|
सिखों की बात सुनकर गुरु जी कहने लगे जो बड़ो का निरादर करता है वहछोटा ही रहता है, और जो बड़ो का आदर करता है वह अपने आप ही बड़ा हो जाता है| गुरुजी के ऐसे वचनों से सरदार बड़ा होते हुए भी छोटा हो गया|