ॐ श्री साँईं राम जी
रावण ने जब सीताजी का हरण किया, तब विभीषण ने परायी स्त्री के हरण को महापाप बताते हुए सीताजी को श्रीराम को लौटा देने की उसे सलाह दी| किन्तु रावण ने उस पर कोई ध्यान न दिया| श्रीहनुमान् जी सीता की खोज करते हुए लंका में आये| उन्होंने श्रीराम नाम से अंकित विभीषण का घर देखा| घर के चारों ओर तुलसी के वृक्ष लगे हुए थे| सूर्योदय के पूर्व का समय था, उसी समय श्रीराम-नाम का स्मरण करते हुए विभीषणजी की निद्रा भंग हुई| राक्षसों के नगर में श्रीराम भक्त को देखकर हनुमान् जी को आश्चर्य हुआ| दो राम भक्तों का परस्पर मिलन हुआ| श्रीहनुमान् जी का दर्शन करके विभीषण भाव विभोर हो गये| उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीराम दूत के रूप में श्रीराम ने ही उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया है| श्रीहनुमान् जी ने उनसे पता पूछकर अशोक वाटिका में माता सीता का दर्शन किया| अशोक वाटिका-विध्वंस और अक्षय कुमार के वध के अपराध में रावण हनुमान् जी को प्राण दण्ड देना चाहता था| उस समय विभीषण ने ही उसे दूत को अवध्य बताकर हनुमान् जी को कोई और दण्ड देनेकी सलाह दी| रावण ने हनुमान् जी की पूँछ में आग लगाने की आज्ञा दी और विभीषण के मन्दिर को छोड़कर सम्पूर्ण लंका जलकर राख हो गयी|
भगवान् श्रीराम ने लंका पर चढ़ायी कर दी| विभीषण ने पुन: सीता को वापस कर के युद्ध की विभीषण को रोकने कि रावण से प्रार्थना की| इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर निकाल दिया| ये श्रीराम के शरणागत हुए| रावण सपरिवार मारा गया| भगवान् श्रीराम ने विभीषण को लंका का नरेश बनाया और अजर-अमर होने का वरदान दिया| विभीषणजी सप्त चिरंजीवियों एक हैं और अभी तक विद्यमान हैं|