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श्री साईं लीलाएं - साईं बाबा की जय-जयकार

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ॐ सांई राम


 
परसों हमने पढ़ा था.. और विष उतर गया

श्री साईं लीलाएं

साईं बाबा की जय-जयकार




दामोदर को सांप के काटने और साईं बाबा द्वारा बिना किसी मंत्र-तंत्र अथवा दवा-दारू के उसके शरीर से जहर का बूंद-बूंद करके टपक जानासारे गांव में इसी की ही सब जगह पर चर्चा हो रही थी|गांव के कुछ नवयुवकों ने द्वारिकामाई मस्जिद में आकर साईं बाबा के अपने कंधों पर बैठा लिया और उनकी जय-जयकार करने लगेसभी छोटे-बड़ेस्त्री-पुरुष साईं बाबा की जय-जयकार के नारे पूरे जोर-शोर से लगा रहे थे|

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हम तो साईं बाबा को इसी तरह से सारे गांव में घुमायेंगे|" नयी मस्जिद के मौलवी ने कहा - "मैंने तो पहले ही कह दिया था कि यह कोई साधारण पुरुष नहीं हैंयह इंसान नहीं फरिश्ते हैंयह तो शिरडी का अहोभाग्य है कि जो यह यहां पर आ गए हैं|"

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हांहांहम साईं बाबा का जुलूस निकालेंगे|" अभी उपस्थित व्यक्ति एक स्वर में बोले|फिर उसके बाद सब जुलूस निकालने की तैयारी करने में लग गये|यह सब देख-सुनकर पंडितजी को बहुत ज्यादा दुःख हुआपूरे गांव में केवल वे ही एक ऐसे व्यक्ति थे जो नये मंदिर के पुजारी के साथ-साथ पुरोहिताई और वैद्य का भी कार्य किया करते थेयह बात उनकी समझ में जरा-सी भी नहीं आयी कि साईं बाबा के हाथ फेरने से ही जहर कैसे उतर सकता हैइस बात को वह ढोंग मान रहे थेइसमें उनको साईं बाबा की कुछ चाल नजर आ रही थीवह गांव के लोगों का इलाज भी किया करते थेसाईं बाबा के प्रति उनके मन में ईर्ष्या पैदा हो गयी थी|साईं बाबा एक चमत्कारी पुरुष हैंपंडितजी इस बात को मानने के लिए बिल्कुल भी तैयार न थेवह ईर्ष्या में भरकर साईं बाबा के विरुद्ध उल्टी-सीधी बातें बोलने लगे|सब जगह केवल साईं बाबा की ही चर्चा थीपरपंडितजी की ईर्ष्या का कोई ठिकाना न था|

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जरूर कोई महात्मा हैं|"

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सिद्धपुरुष हैं|"

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देखो न ! कैसे-कैसे चमत्कार करता है !"
अब आस-पास के लोग जिन्होंने साईं बाबा के चमत्कार के बारे में सुनाउनके दर्शन करने के लिए आ रहे थेउधर पंडितजी न नाग के जहर को शरीर से बूंद-बूंद कर टपक जाने की बात सुनी तो आगबबूला हो गये-और गांव के चौपाल पर बैठे लोगों से बोले-

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यह गांव ही मूर्खों से भरा पड़ा है|" पंडित ने क्रोध से कांपते हुए कहा - "वह कल का मामूली छोकरा भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है कई-कई जन्म बीत जाते हैं साधना करते हुएतब कहीं जाकर सिद्धि प्राप्त होती हैनाग का जहर तो संपेरे भी उतार देते हैंमुझे तो पहले ही दिन पता चल गया था कि वह कोई संपेरा हैंएक संपेरों की ही ऐसी कौम होती हैजिनका कोई दीन-धर्म नहीं होतावह भला सिद्धपुरुष कैसे हो सकता है?"

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आप बिल्कुल ठीक कहते हैं पंडितजी!"-एक व्यक्ति ने कहा - "पन्द्रह-सोलह वर्ष का छोकरा है और गांव वालों ने उसका नाम रख दिया है 'साईं बाबा'| यह साईं बाबा का क्या अर्थ होता हैपंडितजी ! जरा हमें भी समझाइये?"

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इसका अर्थ तो तुम उन्हीं लोगों से जाकर पूछोजिन्होंने उसका यह नाम रखा है|" पंडितजी ने ईर्ष्या में भरकर कहाफिर रहस्यपूर्ण स्वर में बोले-"जाओपुरानी मस्जिद में देखकर आओवहां पर क्या हो रहा है?"तभी अचानक झांझमदृंगढोल और अन्य वाद्यों की आवाज तथा लोगों का कोलाहल सुनकर पंडितजी चौंक गयेबाजों की आवाज के साथ-साथ जय-जयकार के नारे भी सुनायी दे रहे थे|उन्होंने देखासामने से एक जुलूस आ रहा था|

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पंडितजी! बाहर आइए|साईं बाबा की शोभायात्रा आ रही है|" एक व्यक्ति ने बड़े जोर से चिल्लाकर कहा|पंडितजी उस नजारे को देखकर बड़े हैरान थेपालकी के आगे-आगे कुछ गांववासी झांझमंजीरे और ढोल बजाते हुए चल रहे थेउनके पीछे एक पालकी में साईं बाबा बैठे थेदामोदर और उसके साथियों ने पालकी अपने कंधों पर उठा रखी थीउनके साथ गांव के पटेल भी थे और नई मस्जिद के इमाम भीसाथ ही प्रतिष्ठित लोगों की भीड़ भी चल रही थीइन सबके साथ गांव की बहुत सारी महिलाएं भी थींऐसा लगता था कि जैसे सारा गांव ही उमड़ पड़ा होसभी साईं बाबा की जय-जयकार कर रहे थे|साई बाबा का ऐसा स्वागत-सत्कार देखकर पंडितजी के होश उड़ गयेमारे क्रोध के बुरा हाल हो गयावह गला फाड़कर चिल्लाकर बोले-"सत्यानाश! ये ब्राह्मण के लड़के इस संपेरे के बहकावे में आ गए हैंयह बहुत बड़ा जादूगर हैनौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा हैयह बहुत बड़ा जादूगर हैनौजवानों को इसने अपने वश में कर रखा हैदेख लेनाएक दिन यह सब भी इसी की तरह शैतान बन जायेंगेहे भगवान! क्या मेरे भाग्य में यह दिन भी देखना बाकी था?"जैसे-जैसे शोभायात्रा आगे बढ़ती जा रही थी और उसमें शामिल होने वाले लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही रहीसाईं बाबा कि पालकी के आगे-आगे नवयुवक नाचतेगाते और जय-जयकार से वातावरण को गूंजा रहे थे|अपने-अपने घरों के दरवाजों पर खड़ी स्त्रियां फूल बरसाकर शोभायात्रा का स्वागत कर रही थीं|पंडितजी से साईं बाबा का यह स्वागत देखा न गयावह गुस्से में पैर पटकते हुए घर के अंदर चले गए और दरवाजा बंद करकेकमरे मैं जाकर पलंग पर लेट गए और मन-ही-मन साईं बाबा को कोसने लगेकैसा जमाना आ गया हैइस कल के छोकरे ने तो सारे गांव को बिगाड़कर रख दिया हैपंडितजी को साईं बाबा अपना सबसे बड़ा दुश्मन दिखाई दे रहे थेजुलूस गांवभर में घूमता रहा और हर जबान पर साईं बाबा की चर्चा होती रही|शोभायात्रा घूमकर वापस लौट आयी|साईं बाबा के पास कुछ ही व्यक्ति रह गएवह चुपचाप आँखें बंद किये बैठे थे|

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बाबाजब आप पहले-पहल गांव में आए थे और लोगों ने आपसे पूछा था कि आप कौन हैंतो आपने कहा थामैं साईं बाबा हूंसाईं बाबा का क्या अर्थ होता है?" दामोलकर ने पूछाउसके इस प्रश्न पर साईं बाबा मुस्करा दिए|

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देखोदो अक्षर का शब्द है-सा और ईंसा का अर्थ है देवी और ईं का अर्थ होता है मांबाबा का अर्थ होता है पिताइस प्रकार साईं बाबा का अर्थ हुआ-देवी,माता और पिता|"

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जन्म देने वाले माता-पिता के प्रेम में स्वार्थ की भावना निहित होती हैजबकि देवी माता-पिता के स्नेह में जरा-सा भी स्वार्थ नहीं होता हैवह तुम्हारा मार्गदर्शन करते हैं और तुम्हें प्रेरणा देते हैंआत्मदर्शनआत्मज्ञान की सीधी और सच्ची राह दिखाते हैं|" साईं बाबा ने समझाते हुए कहा - "वैसे साईं बाबा को प्रयोग परमपिता परमात्माईश्वरअल्लाताला और मालिक के लिए भी किया जाता है|"

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आप वास्तव में ही साईं बाबा हैं|" सभी उपस्थित लोगों ने एक स्वर में कहा - "आपने हम सभी को सही रास्ता दिखाया हैसबको आपने ईश्वर की भक्ति के मार्ग पर लगाया है|"

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यह मनुष्य शरीर न जाने कितने पिछले जन्मों के पुण्य कर्मों को करने के पश्चात् प्राप्त होता हैइस संसार में जितने भी शरीरधारी हैंउन सबमें केवल मनुष्य ही सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणी हैवह इस जन्म में और भी अधिक पुण्य कर्म कर सकता हैउसके पास बुद्धि हैज्ञान है और इसके बावजूद भी वह मानव शरीर पाकर मोह-माया और वासना के दलदल में फंस जाता हैइससे छुटकारा पाना असंभव हो जाता हैउसका मन रात-दिन वासना और स्वार्थ में लिप्त रहता हैधन-सम्पत्ति पाने के लिए वह कैसे-कैसे कार्य नहीं करता हैमनुष्य को इस दलदल से यदि कोई मुक्ति दिला सकता हैतो वह है गुरु... केवल सद्गुरु|लेकिन आज के समय में सच्चा गुरु कहा मिलता हैसच्चे इंसान ही बड़ी मुश्किल से मिलते हैंफिर सच्चे गुरु का मिलना तो और भी अधिक कठिन है|"

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सच्चे गुरु कि पहचान क्या है साईं बाबा?" एक व्यक्ति ने पूछा|

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सच्चा गुरु वही हैजो शिष्य को अच्छाई-बुराई का भेद बता सकेउचित-अनुचित का अंतर बता सकेआत्मप्रकाशआत्मज्ञान दे सकेजिसके मन में रत्तीभर भी स्वार्थ की भावना न होजो शिष्य को अपना ही अंश मानता होवही सच्चा सद्गुरु है|" साईं बाबा ने बताया और फिर अचानक उन्हें जैसे कुछ याद आयातो वह बोले - "आज तात्या नहीं आया क्या?"

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बाबामैं आपको बताना ही भूल गयातात्या को आज बहुत तेज बुखार आया है|"

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तो आओ चलोतात्या को देख आयें|" साईं बाबा ने अपने आसन से उठते हुए कहासाथ ही अपनी धूनी में से चुटकी भभूति अपने सिर के दुपट्टे में बांधकर चल पड़े
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कल चर्चा करेंगे.. ऊदी का चमत्कार

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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