साईं बाबा की अद्भुत चिकित्सा की चारों ओर प्रसिद्धि फैल चुकी थी| लोग बहुत दूर-दूरसे उनसे अपना इलाज कराने के लिए आया करते थे| बाबा स्वयं कष्ट उठाकर दूसरों काकल्याण किया करते थे| बाबा की दयालुता और सर्वव्यापकता की चारों ओर चर्चाथी|यह घटना सन् 1910 की है| जब धनतेरस के दिन बाबा अपनी धूनी के पास बैठेआग ताप रहे थे और धूनी को अधिक प्रज्जवलित करने के लिए उसमें लकड़ियां भी डालते जारहे थे| धूनी अपनी पूरी प्रचंडता पर थी, कि एकाएक साईं बाबा ने अपने हाथ धूनी मेंडाल दिये| तभी बाबा के भक्तमाधवराव देशपांडे (शामा) ने बाबा को धूनी में हाथडालते देखा तो वह दौड़कर बाबा के पास पहुंचा और बलपूर्वक बाबा को पकड़कर पीछे खींचलिया| वहां उपस्थित किसी भी भक्त की समझ में बाबा की यह लीला नहीं आयी| बाबा केहाथों को देखकर शामा रोता हुआ बोला - "देवा ! यह आपने क्या किया ?" तब बाबा बोले - "यहां से कुछ दूर एक लुहारिन अपनी बच्ची को गोद में लेकर भट्ठी झोंक रही थी तभी पतिके बुलाने पर वह उसके पास चली गयी| उसकी जरा-सी असावधानी के कारण वह बची फिसलकरभट्ठी में गिर गयी| पर, मैंने उसे तत्काल भट्ठी में हाथ डालकर निकाल लिया| खैर, हाथजला तो मुझे इसकी जरा भी चिंता नहीं, लेकिन मुझे तसल्ली है कि उस बच्ची के प्राण तोबच गए|" यह सारी घटना शामा ने चाँदोरकर को खत के माध्यम से लिखकर भेजी| चाँदोरकर कोबाबा के हाथ जलने की घटना का पता चला तो वह मुम्बई के प्रसिद्ध डॉक्टर परमानंद कोसाईं बाबा की चिकित्सा करने के लिए शिरडी लाए| डॉक्टर परमानंद अपने साथ सभी आवश्यकदवाई, लेप, इंजेक्शन आदि लेकर आये थे| मस्जिद पहुंचकर चाँदोरकर ने बाबा के चरणस्पर्श करने के बाद बाबा से विनती की कि वह अपने हाथ का इलाज डॉक्टर परमानंद कोकरने की अनुमति दें| पर बाबा ने स्पष्ट रूप से इलाज कराने से इंकार करदिया|फिर भी बाबा के परम भक्त भागोजी शिंदे उनके जले हुए हाथ पर घी लगाकरएक पत्ता रखते और पट्टी बांधते थे| जिससे बाबा के घाव जल्दी भर जायें और हाथ ठीक होजाए| इसके लिए चाँदोरकर ने बाबा से कई बार विनती की कि वो डॉक्टर परमानंद से अपनीचिकित्सा करवा लें| स्वयं डॉक्टर परमानंद ने भी बाबा से बार-बार आग्रह किया| परबाबा ने चिकित्सा करवाने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि मेरा डॉक्टर तो अल्लाह हीहै| इस तरह डॉक्टर परमानंद को बाबा की चिकित्सा करने का मौका न मिलसका|लेकिन कुष्ठ रोगी होने पर भी भागोजी शिंदे का यह अहोभाग्य (अत्यन्तसौभाग्य) था कि बाबा ने उन्हें पट्टी बांधने की अनुमति दे रखी थी| वे अपने इस कार्यको पूरी श्रद्धा के साथ कर रहे थे| कुछ दिनों में जब घाव भर गया और हाथ पूरी तरह सेठीक हो गया, तब सभी भक्तों को अत्यन्त प्रसन्नता हुई| फिर भी भागोजी शिंदे द्वाराबाबा के उस हाथ पर घी मलने व पट्टी बांधने का सिलसिला बाबा की महासमाधि लेने तकनियमित रूप से जारी रहा| वैसे साईं बाबा पूर्ण सिद्ध थे, उन्हें किसी भी तरह कीचिकित्सा की कोई आवश्यकता न थी, फिर भी अपने भक्तों की प्रसन्नता और प्रेमवशउन्होंने भागोजी शिंदे को सेवा करने का अवसर दिया|
कल चर्चा करेंगे... मुझे पंढरपुर जा के रहना है
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।