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Channel: Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.)
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श्री साईं लीलाएं - बाबा की आज्ञा का पालन अवश्य हो

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ॐ सांई राम





कल हमने पढ़ा था.. बाबा को खुशहालचंद की चिंता   
श्री साईं लीलाएं

बाबा की आज्ञा का पालन अवश्य हो

रहाता शिरडी की दक्षिण दिशा और नीम गांव उत्तर दिशा में बसा हुआ थाइन दोनों गांवों के मध्य में बसा था शिरडीपर साईं बाबा अपने पूरे जीवनकाल में इन दोनों गांव के बाहर कभी नहीं गएन ही बाबा न रेलगाड़ी देखी थी और न ही उसमें कभी सफर ही किया थाफिर भी साईं बाबा को शिरडी से जाने वाली रेलगाड़ी के सही समय की जानकारी रहती थी|बाबा शिरडी आने वाले प्रत्येक भक्त को सही मार्ग बड़े प्यार से दिखातेउसके संकट से उसे मुक्ति दिलातेजो बाबा का कहना मानता वह हर समय सुरक्षित रहता और जा बाबा के कहने को नहीं मानता वह स्वयं ही संकटों में घिर जाताशिरडी की एक विशेषता यह थीकि जो भी शिरडी आतावह बाबा की मर्जी से ही आता और लौटता भी बाबा की मर्जी से हीयदि कोई बाबा से वापस जाने की आज्ञा मांगता तो बाबा बड़े सहज भाव से कहते - 'अरे ! ठहर जरा! दाल-रोटी खाकर जाना|' यदि बाबा की आज्ञा को न मानकर जल्दबाजी में ऐसे ही निकलता तो गाड़ी भी छूटती और खाना भी नसीब न होता तथा बाबा की आज्ञा की अवहेलना करने पर कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता|एक बार की बात है तात्या कोते पाटिल बाजार जाने के लिए घर से चला और मस्जिद के पास तांगा रोककर बाबा के चरण स्पर्श किये और फिर बाबा से निवेदन किया कि - "बाबा मैं कोपर गांव के बाजार जा रहा हूंआज्ञा दें|"बाबा ने कहा - "तात्या ! आज गांव मत छोड़ोबाजार रहने दो|" लेकिन तात्या नहीं मानाफिर उसकी जिद्द को देखते हुए बाबा बोले - "अच्छा ! अगर जा ही रहा है तो अपने साथ शामा को भी ले जा|"पर तात्या कोते ने बाबा की बात सुनी-अनसुनी कर तांगे पर सवार होकर अकेला ही चल दियाउस तांगे में एक तेज दौड़ने वाला घोड़ा भी था जो बड़ा चंचल थाशिरडी से तीन मील आगे सांवली विहार गांव के पास पहुंचते ही वह घोड़ा बड़ी तेजी के साथ उल्टी-सीधी दौड़ लगाने लगापरिणाम यह हुआ कि घोड़े की कमर में मोच आ जाने से घोड़ा जमीन पर गिर पड़ा तथा तांगे का नुकसान भी बहुत हो गयातात्या कोते को चोट तो नहीं लगीपर साईं बाबा द्वारा आज्ञा ने देने की बात उसे अवश्य याद आ गयी|तात्या कोते ने एक बार पहले भी साईं बाबा की आज्ञा का उल्लंघन किया थाजब वह तांगे से कोल्हर गांव जा रहा था और घोड़ा बेकाबू होकर बबूल के पेड़ से जा टकराया थातांगा टूट गया थाघटना जानलेवा थी पर बाबा की कृपा से ही वह बाल-बाल बच गया थाइसके बाद तात्या ने फिर कभी भी बाबा की बात नहीं टाली|

कुछ इस तरह का अनुभव साईं सच्चरित्र लिखने वाले गोविन्द रघुनाथ दामोलकर का रहा हैएक बार वह शिरडी अपने परिवार के साथ गये थेवे वापस जाने के लिए जब साईं बाबा से आज्ञा मांगी तो बाबा ने कहाखाना खाकर जानाजल्दबाजी में बाबा की आज्ञा ने मानते हुए शिरडी छोड़ीरेलगाड़ी पकड़ने के लिए उन्होंने रास्ते में बैलगाड़ी वाले से गाड़ी तेज चलाने को कहाजिसका नतीजा यह हुआ कि बैलगाड़ी का पहिया टूटकर नाले में जा गिराबाबा के आशीर्वाद से किसी को कुछ नहीं हुआपर गाड़ी को ठीक-ठाक करके जाने तक रेलगाड़ी निकल चुकी थीजिस कारणउन्हें एक दिन कोपर गांव में रहकर दूसरे दिन गाड़ी से मुम्बई जाना पड़ा|



यूरोप के रहनेवाले एक अंग्रेज जो मुम्बई में रहा करते थेवह अपने मन में कुछ इच्छा लेकर बाबा के दर्शन करने को आया थाउसे बाबा के भक्तों ने एक शानदार तम्बू में ठहरा दियाउसके मन में यह इच्छा थी कि वह बाबा को सिर झुकाकर उनके कर-कमलों को चुम्बन करेअपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिए वह तीन बार मस्जिद की सीढ़ियों पर चढ़ना चाहापर हर बार बाबा ने उसे सीढ़ियों पर चढ़ने से मना कर दियाउसे आँगन में रहकर ही दर्शन कर लेने को कहा गयाइससे वह निराश हो गयाउसने शीघ्र ही शिरडी से वापस जाने का मन बना लिया|लौटते समय जब वह बाबा के पास आज्ञा लेने आया तो बाबा ने कहा - "इतनी भी जल्दी क्या हैकल चले जाना|" लेकिन वह मानने को तैयार नहीं हुआवहां उपस्थित बाबा के भक्तों ने उसे बाबा की आज्ञा मान लेने को कहालेकिन वह नहीं मानावह तांगे में बैठकर चल दियातांगा अभी सांवली विहार गांव तक ही पहुंचा था कि अचानक सामने से एक साइकिलसवार आ गया जिससे घोड़े बिदक गये और अत्यन्त तेजी से दौड़ने लगेपरिणामत: तांगा पलट गया और वह गिरकर घायल हो गयेवहां मौजूद लोगों की मदद से तांगेवाले ने उन्हें उठाकर कोपर गांव के अस्पताल में भर्ती करायाजहां उन्हें कई दिनों तक रहना पड़ा|



मुम्बई निवासी रघुवीर भास्कर पुरंदरे एक बार अपने परिवार के साथ शिरडी गये थेलौटते समय अपनी माँ की इच्छानुसार उन्होंने नासिक होकर जाने के लिए साईं बाबा की अनुमति मांगीतो बाबा बोले, - "ठीक हैपर नासिक में दो दिन रुकनाफिर आगे जाना|" पुरंदरे जब शिरडी से नासिक आये तो उसी दिन उनके छोटे भाई को तेज बुखार हो गयायह देखते परिवार के सब लोग मुम्बई जाने के लिए जिद्द करने लगेतब बाबा ने उन्हें बाबा के वचन याद दिलाये और अपना फैसला सुना दियाकि चाहे कुछ भी हो जायेमैं दो दिन बाद ही यहां से जाऊंगा|" फिर उन्हें मजबूरी में वहां रहना पड़ादूसरे दिन बुखार किसी जादू की तरह अपने आप गायब हो गया और फिर तीसरे दिन सभी प्रसन्नता से मुम्बई लौट आये|



एक बार नाना साहब चाँदोरकर और दो अन्य साथी तथा एक कीर्तनकार मिलकर साईं बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी आयेबाबा के दर्शन कर लेने के बाद वापस लौटने के लिए कीर्तनकार जल्दी करने लगेउनका कीर्तन अहमदनगर में पहले से निश्चित थायह जानकर चाँदोरकर से लौटने के लिए बाबा से अनुमति मांगी तो बाबा ने उन्हें भोजनप्रसाद खाकर जाने के लिए कहालेकिन वे कीर्तनकार नहीं माने और चाँदोरकर के साथ वाले एक सज्जन के साथ रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ेचाँदोरकर और एक सज्जन वहीं पर रुक गयेदोपहर को भोजनप्रसाद खाकर जब वे बाबा से मिलने गये तो साईं बाबा बोले - "आराम से जाओअभी गाड़ी के लिए देर है|"जब दोनों स्टेशन पर पहुंचे तो गाड़ी देर से आने वाली थी और कीर्तनकार और उनके साथी गाड़ी के लिए बैठे थेइनको देखकर वे बोले - "आपने बाबा का कहना मानकर अच्छा ही कियाहम बाबा की बात न मानकर अभागे निकलेतभी तो हमें यहां भूखा-प्यासा तड़पने बैठने की नौबत आयी|" फिर गाड़ी आने के बाद सब चले गये|


एक बार तात्या साहब नूलकर और भाऊ साहब दीक्षित अपने कुछ साथियों के साथ शिरडी साईं बाबा के दर्शन करने के लिये आये थेजब वह वापस लौटने लगे तब उन्होंने साईं बाबा से अनुमति मांगीतो साईं बाबा बोले - "कल चले जाओ और जाते-जाते कोपर गांव के भोजनालय में खाना भी खा लेना|" उन्होंने वैसा ही किया और कोपर गांव भोजनालय में संदेशा भी भिजवा दियालेकिन जब दूसरे दिन कोपर गांव पहुंचे तो खाना बनने में अभी कुछ समय लगना थायह देखते ही गाड़ी पकड़ने के लिए वह बिना खाने खायेवैसे ही स्टेशन चले गयेतो वहां पता चला कि अभी रेलगाड़ी दो घंटे देरी से आयेगीफिर उन्होंने तांगा भेजकर भोजनालय से भोजन मंगाया और वहीं स्टेशन पर खायादस मिनट बाद रेलगाड़ी आयी और फिर सब लोग आगे रवाना हो गए|

कल चर्चा करेंगे..बांद्रा गया भूखा ही रहा 

ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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