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साँई वाणी (भाग 3)

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ॐ सांई राम



साँई वाणी (भाग 3)

साईं  नाम  मुक्तामणि, राखो  सूत  पिरोय  |

पाप  ताप  न  रहे, आत्मा  दर्शन  होय  ||

सत्य  मूलक  है  रचना  सारी, सर्व  सत्य  प्रभु  साईं  पसारी |
बीज से  तरु  मकडी  से  तार, हुवा  त्यों  साईं  जग  से  विस्तार  ||

साईं  का  रूप  हृदय  में  धारो, अंतरमन  से  साईं  पुकारो  |
अपने  भक्त   की   सुनकर  टेर, कभी  न  साईं  लगाते  देर  ||

धीर  वीर  मन  रहित  विकार, तन  से  मन  से  कर  उपकार  |
सदा  ही  साईं  नाम  गुण  गावे, जीवन  मुक्त  अमर  पद  पावे  ||

साईं  बिना  सब  नीरस  स्वाद, ज्यों  हो  स्वर  बिना  राग  विषाद |
साईं  बिना  नहीं  सजे  सिंगार, साईं  नाम  है  सब  रस  सार  ||

साईं  पिता  साईं  ही  माता, साईं  बन्धु  साईं  ही  भ्राता |
साईं  जन  जन  के  मन  रंजन, साईं  सब  दुःख  दर्द  विभंजन  ||

साईं  नाम  दीपक  बिना, जन  मन  में  अंधेर  |

इसीलिए  है  मम  मन, नाम  सुमाला  फेर  ||

जपते  साईं  नाम  महा  माला, लगता  नरक  द्वार  पे  ताला  |
रखो  साईं  पर  एक  विश्वास, सब  तज  करो  साईं  की  आस  ||

जब  जब  चढ़े  साईं  का  रंग, मन  में  छाये  प्रेम  उमंग  |
जपते  साईं  साईं  जप  पाठ, जलते  कर्मबंधन  यथा  काठ  ||

===ॐ  साईं  श्री  साईं  जय जय  साईं===

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