ॐ सांँई राम जी
देख सको तो मन में साँईं
शिर्डी के कण कण में साँईं
जिस पर दृष्टि संत ये डाले
सुख पदार्थ पाये निराले
समाधिस्थ जहाँ मेरा साँई
वो शिर्डी हैं बड़ी सुखदायी
साँईं के द्वार पाखंड ना करना
भूल के भी तू घमंड ना करना
मातृहीन शिषु की भाँति
बिना गुरु ना मिलती शांति
साँईं की चौखट पर बंदे
मन से माथा टेक
कुछ ना कुछ कर देगा
अदभुत जादू देख
चमत्कार वो जब दिखलाता
पानी से भी दिये जलाता
उसकी दया के बाण जो चलते
मीठे हो जाये नीम के पत्ते
बगल में छुरिया मुहं में राम
नहीं चलेगा साँईं के धाम
जिस नईया का साँई खिवईया
उस पर कोई कष्ट ना आये भईया