ॐ श्री साँईं राम जी
भगवान् श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मणके साथ अपनी पत्नी सीताजीको खोजते हुए ऋष्यमूकके पास आये| श्रीसुग्रीवके आदेशसे श्रीहनुमान् जी विप्रवेशमें उनका परिचय जाननेके लिये गये| अपने स्वामीको पहचानकर ये भगवान् श्रीरामके चरणोंमें गिर पड़े| श्रीरामने इन्हें उठाकर हृदयसे लगा लिया और श्रीकेशरीकुमार सर्वदाके लिये श्रीरामके दास हो गये| इन्हींकी कृपासे सुग्रीवको श्रीरामका मित्र होनेका सौभाग्य मिला| वाली मारा गया और सुग्रीव किष्किन्धाके राजा बने|
सीताशोध, लंकिनी-वध, अशोकवाटिकामें अक्षयकुमार-संहार, लंकादाह आदि अनेक कथाएँ श्रीहनुमान् जीकी प्रखर प्रतिभा और अनुपम शौर्यकी साक्षी हैं| लंकायुद्धमें इनका अद्भुत पराक्रम तथा इनकी वीरता सर्वोपरि रही| मेघनादके द्वारा लक्ष्मणके मूर्च्छित होनेपर इन्होंने संजीवनी लाकर उन्हें प्राणदान दिया| राक्षस इनकी हुंकारमात्रसे काँप जाते थे| रावणकी मृत्युके बाद जब भगवान् श्रीराम अयोध्या लौटे, तब श्रीहनुमान् जी ने ही श्रीरामके लौटनेका शुभ समाचार श्रीभरतजीको सुनाकर उनके निराश जीवनमें नवीन प्राणोंका सञ्चार किया|
श्रीहनुमान् जी विद्या, बुद्धि, ज्ञान तथा पराक्रमीकी मूर्ति हैं| जबतक पृथ्वीपर श्रीरामकथा रहेगी, तबतक श्रीहनुमान् जीको इस धरा-धामपर रहनेका श्रीरामसे वरदान प्राप्त है| आज भी ये समय-समयपर श्रीरामभक्तोंको दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ किया करते हैं|