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श्री साईं लीलाएं - ऊदी का चमत्कार

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 ॐ सांई राम




कल हमने पढ़ा था.. साईं बाबा की जय-जयकार

श्री साईं लीलाएं - ऊदी का चमत्कार




साईं बाबा जब दामोदर तथा कुछ अन्य शिष्यों को साथ लेकर तात्या के घर पहुंचेतो तात्या बेहोशी में न जाने क्या-क्या बड़बड़ा रहा थाउसकी माँ वाइजाबाई उसके सिरहाने बैठी उसका माथा सहला रही थीतात्या बहुत कमजोर दिखाई पड़ रहा था|साईं बाबा को देखते ही वाइजाबाई उठकर खड़ी हो गईउसकी आँखें शायद रातभर सो पाने के कारण सूजी हुई थीं और चेहरा उतरा हुआ थाउसे बेटे की बहुत चिंता सता रही थीबुखार ने तात्या के शरीर को एकदम से तोड़ के रख दिया था|

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साईं बाबा!"वाइजाबाई कहते-कहते रो पड़ी|

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क्या बात है मांतुम रो क्यों रही हो?" साईं बाबा तात्या के पास जाकर बैठ गये|वाइजाबाई बोली-"जब से आपके पास से आया हैबुखार में भट्टी की तरह तप रहा है और बेहोशी में न जाने क्या-क्या उल्टा सीधा बड़बड़ा रहा है|"

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देखूंजरा कैसेक्या हो गया है इसे?" दुपट्टे के छोर में बंधी भभूति निकाली और तात्या के माथे पर मलने लगे|वाइजाबाईदामोदर और साईं बाबा के अन्य शिष्य इस बात को बड़े ध्यान से देख रहे थे|तात्या के होंठ धीरे-धीरे खुल रहे थेवह कुछ बड़बड़ा-सा रहा थाउसका स्वर इतना धीमा और अस्पष्ट था कि किसी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था|

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साईं बाबा!"अचानक तात्या के होठों से निकला और उसने आँखें खोल दीं|

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क्या हुआ तात्या! मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा थाजब तुम नहीं आये तो मैं स्वयं तुम्हारे पास चला आया|" साईं बाबा ने स्नेहभरे स्वर में कहाउनके होठों पर हल्की-सी मुस्कान तैर रही थी और आँखों में अजीब-सी चमक|

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बाबा ! मुझे न जाने क्या हो गया हैआपके पास से आया और खाना खाकर सो गयाऐसा सोया कि अब आँखें खुलीं हैं|" तात्या ने कहा|

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कल से तू बुरी तरह से बुखार में तप रहा है|" वाइजाबाई अपने बेटे की ओर देखते हुई बोली - "मैंने सारी रात तेरे सिरहाने बैठकर काटी है|"

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बुखार...! मुझे बुखार कहां हैमेरा बदन तो बर्फ जैसा ठंडा है|" इतना कहते हुए तात्या ने अपना दायां हाथ आगे बढ़ा दिया और फिर दूसरा हाथ दामोदर कि ओर बढ़ाते हुए बोला -"लो भाईजरा तुम भी देखोमुझे बुखार है क्या?"वाइजाबाई और दामोदर ने तात्या का हाथ देखाअब उसे जरा-सा भी बुखार नहीं थावाइजा ने जल्दी ने तात्या के माथे पर हथेली रखीथोड़ी देर पहले उसका माथा गरम तवे की तरह जल रहा थापर अब तो बर्फ कि भांति ठंडा थावाइजा और दामोदर हैरत के साथ साईं बाबा की ओर देखने लगे|साईं बाबा मंद-मंद मुस्करा रहे थे|वाइजाबाई यह चमत्कार देखकर हैरान रह गयी थी|तभी साईं बाबा अचानक बोले -"मांमुझे बहुत भूख लगी हैरोटी नहीं खिलाओगी?"वाइजाबाई ने तुरंत हड़बड़ाकर कहा -"क्यों नहींअभी लायी|" और फिर वह तेजी से अंदर चली गयी|थोड़ी देर में जब वह अंदर से आयीतो उसके हाथ में थाली थीजिसमें कुछ रोटियां और दाल से भरा कटोरा था|साईं बाबा ने अपने दुपट्टे के कोने में रोटियां बांध लीं और तात्या की ओर देखते हुए बोले-"चलो तात्याआज तुम भी मेरे साथ ही भोजन करना|"तात्या एकदम बिस्तर से उठकर खड़ा हो गयाउसे देखकर इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले वह बहुत तेज बुखार से तप रहा थाऔर न ही उसमें अब कमजोरी थी|

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ठहरो बाबामैं और रोटियां ले लाऊं|" वाइजाबाई ने कहा|

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नहीं माँबहुत हैंहम सबका पेट भर जायेगा|" साईं बाबा ने कहाफिर वह अपने शिष्यों को साथ लेकर द्वारिकामाई मस्जिद की ओर चल दिये|उनके जाने के बाद वाइजाबाई सोच में पड़ गयीउसने कुल चार रोटियां ही दी हैंइनसे सबका पेट कैसे भर जायेगाअतएव उसने जल्दी-जल्दी से और रोटियां बनाईंफिर उन्हें लेकर मस्जिद की ओर चल दी|जब वह रोटियां लेकर द्वारिकामाई मस्जिद पहुंची तो साईं बाबा सभी लोगों के साथ बैठे खाना का रहे थेपांचों कुत्ते भी उनके पास ही बैठे थेवाइजाबाई ने रोटियों की टोकरी साईं बाबा के सामने रख दी|

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माँतुमने बेकार में ही इतनी तकलीफ कीमेरा पेट तो भर गया हैइन लोगों से पूछ लोजरूरत हो तो दे दो|" साईं बाबा ने रोटी का आखिरी टुकड़ा खाकर लम्बी डकार लेते हुए कहा|वाइजाबाई ने बारी-बारी से सबसे पूछासबने यही कहा कि उनका पेट भर चूका हैउन्हें और रोटी की जरूरत नहींवाइजाबाई ने रोटी के कुछ टुकड़े कुत्तों के सामने डालेलेकिन कुत्तों ने उन टुकड़ों की ओर देखा तक नहींअब वाइजाबाई के हैरानी की सीमा न रहीउसने साईं बाबा को कुल चार रोटियां दी थींउन चार रोटियों से भला इतने आदमियों और कुत्तों का पेट कैसे भर गया?उसकी समझ में कुछ भी न आया|उसे साईं बाबा के चमत्कार के बारे में पता न थाएक प्रकार से यह उनका एक और चमत्कार थाजो वह प्रत्यक्ष देख और अनुभव कर रही थी|शाम तक तात्या के बुखार उतरने की बात गांव से एक छोर से दूसरे छोर तक फैल गई|

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धूनी की भभूति माथे से लगाते ही तात्या का बुखार से आग जैसा जलता शरीर बर्फ जैसा ठंडा पड़ गया|" एक व्यक्ति ने पंडितजी को बताया|

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अरे जा-जाऐसे कैसे हो सकता हैबर्फ जैसा ठंडा पड़ गया बुखार से तपता शरीरसुबह दामोदर खुद तात्या को देखकर आया थाउसका शरीर भट्टी की तरह दहक रहा थावह तो पिछली रात से ही बुखार के मारे बेहोश पड़ा थाबेहोशी में न जाने क्या-क्या उल्टा-सीधा बड़बड़ा रहा थाइतना तेज बुखार और सन्निपातचुटकीभर धूनी की राख से छूमंतर हो जायेतो फिर दुनिया ही न बदल जाये|" पंडितजी ने अविश्वासभरे स्वर में कहा|

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यह बात एकदम सच है पंडितजी !"उस व्यक्ति ने कहा -"और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है पंडितजी !"

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वह क्या?" पंडितजी का दिल किसी अनिष्ट की आंशका से जोर-जोर से धड़कने लगा|

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साईं बाबा ने तात्या के घर जाकर वाइजाबाई से खाने के लिए रोटियां मांगींउसने कुल चार रोटियां दी थींउस समय साईं बाबा के साथ दामोदर और कई अन्य शिष्य भी थेवाइजाबाई ने सोचा कि चार रोटियों से इतने आदमियों का पेट कैसे भरेगाफिर साईं बाबा के साथ उनके कुत्ते भी तो खाना खाते हैं|वाइजाबाई ने और रोटियां बनाईं और लेकर मस्जिद गईसबने यही कहा कि उनका पेट भर चुका हैवाइजाबाई ने एक रोटी तोड़कर कुत्तों के आगे डालीलेकिन कुत्तों ने रोटी को सूंघा भी नहींअब आप ही बताइएसब लोगों के हिस्से मैं मुश्किल से चौथाई रोटी आयी होगीएक-एक आदमी चार-छ: रोटियों से कम तो खाता नहीं हैफिर उसका एक टुकड़े में ही कैसे पेट भर गयाचमत्कार है न !"उस व्यक्ति ने शुरू से अंत तक सारी कहानी ज्यों कि त्यों पंडितजी को सुना दी|उसकी बात सुन पंडितजी बुरी तरह से झल्लाकर बोले-"बेकार की बकवास मत करोयह सब झूठा प्रचार हैतुम्हारा नाम दादू है नाजैसा तुम्हारा नाम है वैसी ही तुम्हारी अक्ल भी हैमैं इनमें से किसी भी बात पर विश्वास करने के लिए तैयार नहींयह उन सब छोकरों की मनगढ़ंत कहानी हैजो रात-दिन गांजे के लालच में उसके साथ चिपटे रहते हैंसाईं बाबा खुद भी गांजे के दम लगाता है तथा गांव के सब छोकरों को अपने जैसा गंजेड़ी बनाकर रख देगा|"पंडितजी की बात सुनकर दादू को बहुत तेज गुस्सा आयालेकिन कुछ सोचकर वह चुप रह गयाउसकी पत्नी पिछले कई महीनों से बीमार थीउसका इलाज पंडितजी कर रहे थेपर कोई लाभ न हो रहा थापंडितजी दवा के नाम पर उससे बराबर पैसा ऐंठ रहे थे|पंडितजी साईं बाबा के प्रति पहले से ही ईर्ष्या व द्वेष की भावना रखते थेदादू की बातें सुनकर उनकी ईर्ष्या और द्वेष की भावना और ज्यादा भड़क उठीसाईं बाबा पर गुस्सा उतारना तो संभव न थादादू पर ही अपना गुस्सा उतारने लगेउन्होंने गुस्से में जल-भुनकर दादू की ओर देखते हुए कहा - "यदि इतना ही विश्वास है कि धूनी की राख लगते ही तात्या का बुखार छूमंतर हो गया तो तू अपनी घरवाली को क्यों नहीं ले जाता उसके पासआज से वो ही तेरी घरवाली का इलाज करेगामैं आज से तेरी पत्नी का इलाज बंद करता हूंजाअपने ढोंगी साईं बाबा के पास और धूनी की सारी राख लाकर मल दे अपनी घरवाली के सारे शरीर परबीवी में मुट्ठीभर हडि्डयां बची हैंधूनी की राख मलते ही बीमारी पल में छूमंतर हो जायेगीजा भाग जा यहां से|"

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ऐसा मत कहोपंडितजी! मैं गरीब आदमी हूं|" दादू ने हाथ जोड़ते हुए पंडितजी से कहापरपंडितजी का गुस्सा तो इस समय सातवें आसमान पर पहुंचा हुआ था|दादू ने बड़ी नम्रता से कहा - "पंडितजी ! मैं साईं बाबा की प्रशंसा कहां कर रहा थामैंने तो केवल सुनी हुई बात आपको बतलायी है|"

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चुप करआज से तेरी घरवाली का इलाज वही करेगा|" पंडितजी ने क्रोध से दांत भींचते हुए दृढ़ स्वर में कहा|दादू पंडितजी का गुस्सा देखर हैरान थासाईं बाबा के नाम पर इतनी जिद्दपंडितजी पर दादू की प्रार्थना का कोई प्रभाव न पड़ाबल्कि दादू पर पंडितजी का गुस्सा बढ़ता ही चला जा रहा था|दादू का हाथ पकड़करएक ओर को झटका देते हुए कहा - "मैं जात का ब्राह्मण एक बार जो कुछ कह देता हैवह अटल होता है मैंने जो कह दियाहो कह दियाअब उसे पत्थर की लकीर समजो|"

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नहीं पंडितजीऐसा मत कहियेयदि मेरी घरवाली को कुछ हो गया तो मैं जीते-जी मर जाऊंगामेरी हालत पर तरस खाइयेमेहरबानी करके ऐसा मत कीजियेमैं बड़ा गरीब आदमी हूं|" दादू ने गिड़गिड़ाकर हाथ जोड़ते हुए कहा|वहां चबूतरे पर मौजूद अन्य लोगों ने भी दादू की सिफारिश कीलेकिन पंडितजी जरा-सा भी टस से मस न हुएगुस्से में भ्ररकर बोले - "मेरी मिन्नत करने की कोई आवश्यकता नहीं हैजाचला जा अपने साईं बाबा के पासउन्हीं से ले आ चुटकी-भर धूनी की राखउसे अपनी अंधी माँ की आँखों में डाल देदिखाई देने लगेगाउसे मल देना अपनी अपाहिज बहन के हाथ-पैरों परवह दौड़ने लगेगीअपनी घरवाली को भी लगा देनारोग छूमंतर हो जाएगाजा भाग यहां सेखबरदार! जो फिर कभी मेरे चबूतरे पर पांव भी रखा तोहाथ-पैर तोड़कर रख दूंगा|" जिस बुरी तरह से पंडितजी ने दादू को लताड़ा थाउससे उसकी आँखों में आँसूं भर आएवह फूट-फूटकर रोने लगापरपंडितजी पर इसका जरा-सा भी प्रभाव न पड़ा|हारकर दादू दु:खी मन से अपने घर लौट गया|

कल चर्चा करेंगे.. ऊदी का एक और चमत्कार

ॐ सांई राम

ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं

बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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