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श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ - पुत्र का वरदान

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श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ








पुत्र का वरदान


एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थी| गुरु जीसे आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं है| आप किरपा करकेमुझे पुत्र का वरदान दो| गुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भागमें पुत्र नहीं है| माई निराश होकर बैठ गई|

भाई गुरदास जी ने माई सेनिराशा का कारण पूछा| उसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी नेउसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं है| भाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरुजी को प्रार्थना करने को कहा| अगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना किमहाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैं| अगर पहले नहीं लिखा, तो अब यहाँ ही लिखदो| आप समर्थ हैं|

दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जानेलगे| जल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एकपुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करो| गुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माईतेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखा| माई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चेपादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दो| यहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|

माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्रहोगा| माई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिखदो ताकि मेरे मन को शांति हो| गुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ परलिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गया| गुरु जीने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैं| अबतुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगे| माई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपनेघर आ गई|

एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थी| गुरु जीसे आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं है| आप किरपा करकेमुझे पुत्र का वरदान दो| गुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भागमें पुत्र नहीं है| माई निराश होकर बैठ गई|

भाई गुरदास जी ने माई सेनिराशा का कारण पूछा| उसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी नेउसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं है| भाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरुजी को प्रार्थना करने को कहा| अगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना किमहाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैं| अगर पहले नहीं लिखा, तो अब यहाँ ही लिखदो| आप समर्थ हैं|

दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जानेलगे| जल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एकपुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करो| गुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माईतेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखा| माई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चेपादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दो| यहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|

माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्रहोगा| माई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिखदो ताकि मेरे मन को शांति हो| गुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ परलिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गया| गुरु जीने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैं| अबतुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगे| माई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपनेघर आ गई|

एक दिन झंगर नाथ गुरु हरिगोबिंद जी से कहने लगे कि आप जैसे गृहस्थियों का हमारे साथ ,जिन्होंने संसार के सभ पदार्थों का त्याग कर रखा है उनके साथ  झगड़ा करनाअच्छा नहीं है| इस लिए आप हमारे स्थान गोरख मते को छोड़ कर चले जाये| गुरु जी हँसकर कहने लगे, आपका मान ममता में फँसा हुआ है| किसे स्थान व पदार्थ में अपनत्वरक्खना योगियों का काम नहीं है| आप अपने आप को त्यागी कहते हुए भी मोह माया मेंफँसे हुए है|

गुरु जी की यह बात सुनकर योगी अपनी अजमत दिखाने के लिएआकाश में उड़ कर पथरो कि वर्षा और आग कि चिंगारियां उड़ाने लगे| मिट्टी कंकरो किजोरदार आंधी चल पड़ी| बड़े-बड़े भयानक रूप धारण करके मुँह से मार लो मार लो किआवाजें करके सिखों को डराने लगे| साथ ही साथ शेर और सांप के भयंकर रूप धारण करकेफुंकारे मारने लगे| गुरु जी ने सिखों को चुपचाप तमाशा देखने को कहा| इनकी सारीशक्ति अभी नष्ट हो जायेगी|

गुरु जी ने ऐसे वचन करके जब ऊपर देखा तो सिद्ध जोजिस आकार में था, वहाँ ही उसको आग जलाने लगी| इस अग्नि से व्याकुल होकर सिद्ध भागकर गोरख नाथ के पास चले गए और रख लो रख लो कि दुहाई देकर उसकी शरण पड़ गए| गोरख नेकहा कि हमने आपको पहले ही समझाया था कि गुरु नानक कि गद्दी से झगड़ा करना ठीक नहीं| परन्तु आपने हमारी बात नहीं मानी, अब मान गँवा कर भागे आये हो| इस तरह गोरखने  उनको लज्जित किया|

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