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अमृत-वाणी

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ॐ सांई राम


अमृत-वाणी
हमेशा अपने चेहरे पर मुसकराहट बनाये रखे भले ही हमें ऐसा प्रयत्न पूर्वक् करना पडे़। हम इसे कैसे भी शुरु करें।आप उस गुण को अपने अन्दर मान ले जो आप में नही है।यदि कोई अच्छी आदत है जिसे आप विकसित करना चाहते हैं,ऐसी क्रिया कीजिये जैसे वह गुण आपके अन्दर है। धीरे-धीरे यह वास्तविकता हो जायेगी ।यहां तक कि यदि आपको मुसकराना पसन्द नही है फिर भी किसी तरह से मुसकरायें और आप स्वत: ही आनन्दित महसूस करेंगे।

Swami Sivananda Ji 

यदि तुम सोचते हो कि तुम दूसरों से श्रेष्ठ हो, तुम उनके साथ घृणात्मक व्यवहार करना शुरु कर दोगे। श्रेष्ठता और हीनता अज्ञान की उपज है। समान दृष्टि विकसित करो। जब आप एक को ही सब जगह देखते हो तब श्रेष्टता और हीनता कहां है? अपने दृष्टिकोण को और मानसिक अभिवृत्ति को बदलो और शांति पूर्वक रहो।

Swami Sivanand Ji 

असावधानी और विस्मरण् ये दो ऐसे बुरे गुण हैं जो मनुष्य की सफलता के रास्ते मे खड़े रहते हैं। एक लापरवाह व्यक्ति किसी भी कार्य को साफ और सही तरीके से नहीं कर सकता। असावधान व्यक्ति लगकर किसी कार्य को करने का ज्ञान नही रखता।उसमें ध्यान की एकाग्रता नही होती। तुम्हें इन बुराईयों को दूर करने के लिये एक दृढ इच्छा शक्ति को विकसित करना होगा।इन बुराईयों के विपरीत गुणों को विकसित करना होगा।
भटके हुए लोगों के लिए दीपक बनो, बीमार और रोगियों के लिए डाक्टर और नर्स बनो, जो निर्भयता और अमरत्व के दूसरे छोर परजाने के इच्छुक हैं उनके लिए नाव और पुल बनो |
  

Sri Paramahansa Yoganand Ji 

समृद्धि के नियम को मनुष्य द्वारा स्वयं अपने लाभ के लिए ही तोड़ा मरोड़ा नहीं जा सकता जब तक दूसरों के सुख को अपनी समृद्धि में समाहित नहीं कर लेते तुम आदर्श रूप में कभी समृद्ध नहीं हो पाओगे अपने आप को इस बात की लिए प्रेरित करो कि आपके कार्यऔर योजनाओं से दूसरों को लाभ कैसे मिल सकता है |
प्रत्येक गलत कार्य व्यक्ति के स्वयं के विरोध में जाता है इससे शान्ति और खुशी नहीं मिलती कभी-कभी अच्छा बनना कठिन लगता है जबकि बुरा बनना बहुत आसान; और बुरी आदतों को छोड़कर ऐसा लगता है कि हमसे कुछ छूट गया है ऐसी बातों से बचो यह निश्चित रूप से आपके लिए हानिकारक है उन कार्यों को चुनो जिससे आपको खुशी और स्वतंत्रता मिले सदव्यवहार और सदाचार को विकसित करो जो तुम्हें स्वतंत्रता की ओर ले जाता है | 

Swami Ramsukhdas Ji 

किसी के लिये कुछ करके यदि आपको अभिमान होता है कि आपने दूसरों के लिये कुछ अच्छा किया है तो यह आपकी गलती है। क्योंकि जो भी योग्यता, कला, ज्ञान आपके पास है वह समाज से ही आपको प्राप्त हुआ है। यदि तुम इसका प्रयोग समाज के लिये करते हो तो यह कोई महान कार्य नहीं है। यदि आपको इस बात का अभिमान है तो आपमे अहंकार विकसित हो रहा है और यह आपको मेरेपन की ओर ले जाता है।
                  

|| ॐ श्री साई नाथाय नमः ||


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