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श्री साईं सच्चरित्र सार

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ॐ सांई राम


श्री साईं सच्चरित्र सार
जिस तरह कीड़ा कपड़ो को कुतर डालता है,
उसी तरह इर्ष्या मनुष्य को

क्रोध मुर्खता से शुरू होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है

नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते है

सम्पन्नता मित्रता बढाती है, विपदा उनकी परख करती है

एक बार निकले बोल वापस नहीं आ सकते, इसलिए सोच कर बोलो

तलवार की धार उतनी तेज नहीं होती, जीतनी जिव्हा की

धीरज के सामने भयंकर संकट भी धुएं के बदलो की तरह उड़ जाते है

तीन सचे मित्र है - बूढी पत्नी, पुराना कुत्ता और पास का धन

मनुष्य के तीन सद्गुण है - आशा, विश्वास और दान

घर में मेल होना पृथ्वी पर स्वर्ग के सामान है

मनुष्य की महत्ता उसके कपड़ो से नहीं वरण उसके आचरण से जानी जाती है

दुसरो के हित के लिए अपने सुख का भी त्याग करना सच्ची सेवा है

भूत से प्रेरणा लेकर वर्त्तमान में भविष्य का चिंतन करना चाहिए


जब तुम किसी की सेवा करो तब उसकी त्रुटियों को देख कर उससे घृणा नहीं करनी चाहिए

मनुष्य के रूप में परमात्मा सदा हमारे साथ सामने है, उनकी सेवा करो

अँधा वह नहीं जिसकी आंखे नहीं है, अँधा वह है जो अपने दोषों को ढकता है

चिंता से रूप, बल और ज्ञान का नाश होता है

दुसरो की गिराने की कोशिश में तुम स्वयं गिर जाओगे

प्रेम मनुष्य को अपनी तरफ खींचने वाला चुम्बक है


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