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Channel: Shirdi Ke Sai Baba Group (Regd.)
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साँईं से अरदास

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माथा टेक कर श्री साँईं चरणों में
मैं प्रतिदिन करूं यह अरदास
बख्शना मेरे गुनाह किये जो कोई
करें पुत्र से तुलना यह साँईं दास
तेरा अक्स था वो था तेरा साया
जानूं साँईं रूप धर बालक का आया
सेवा भाव में रही कमी जो थोड़ी
हो गया लीन जा ज्योति में समाया
तूने ही दीना और तूने ही लिया छीन
रह गया यह दास ज्यूं जल बिन मीन
अब ना कसर साँईं कोई भी करियों
बालक को बस चरणों में ही धरियों
मैं मूर्ख हूँ पर तू ज्ञान का भरा भंडार
रखियों बच्चे को बना कर गोद का श्रृंगार


मेरे बाबा सुन लो मन की पुकार को

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ॐ सांई राम



 मेरे बाबा सुन लो, मन की पुकार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को


ठुकराया है दुनिया ने, देकर खूब भरोसा
अब न खाने वाला, इस दुनिया से धोखा
करो कृपा न भूलूँ मैं, तेरे इस उपकार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।

जीवन बन गया बाबा , सचमुच एक पहेली
जाने कब सुलझेगी, मेरे जीवन की पहेली
राह दिखाना भोले, अपने भक्त लाचार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।

तेरे सिवा न कोई है, जिसको कहूँ मैं अपना
लगता होगा पूरा न , जो भी देखा है सपना
तुम्ही जानो कैसे, मिलेगा चैन बेकरार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।

-: आज का साईं सन्देश :-
ध्यान धारणा योग तप,
बहुत कठिन है राह ।
भक्ति बाबा साईं की,
साईं चरित अथाह ।।
गौ बछड़े के प्रेम को,
जाने सकल जहान ।
सद्गुरु अपने शिष्य को,
प्रेम करें तस मान ।।
    
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हर भूल को हमरी क्षमा करो

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ॐ सांई राम




हर भूल को हमरी क्षमा करो
बच्चे है हम साईं क्षमा करो
हर भूल को हमरी क्षमा करो

अज्ञान राह पर चल पड़े
हर भूल को हमरी क्षमा करो
प्राशचित करने हम आ खड़े
हर भूल को हमरी क्षमा करो

आखो से अश्रु बह रहे
हर भूल को हमरी क्षमा करो
कुछ भी न हम कह सके
हर भूल को हमरी क्षमा करो

अब फिर से न दोहराहेगे हम
हर भूल को हमरी क्षमा करो
तेरी भक्ति को हम समझ न पाए
हर भूल को हमरी क्षमा करो

साईं क्षमा करो साईं क्षमा करो
अपने दिल से क्षमा करो

साईंराम साईंराम साईंराम साईंराम
साईंराम साईंराम साईंराम साईंराम

-: आज का साईं सन्देश :-
सेवक थे हेमांडजी,
न्यायधीश कहलाय ।
उन्निस सोलह साल में,
सेवा मुक्ति पाय ।।
अब वेतन आधा मिले,
नहीं चले घरबार ।
परेशान हेमांड जी,
आये साईं द्वार ।।
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If God created us, if he is sovereign and if he knows all, why does he hold us responsible?

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ॐ सांई राम






Question:
If God is ruler of the universe and controller of all, then why is He not responsible for anything? And why are we held responsible for every thing when we are not born knowing all that God is about. Why didn't God create us knowing His word so we would have a real choice?

Answer:
What a great question! From a human perspective it seems reasonable to think that if God made us, and if he is sovereign, he is responsible for anything we do. Therefore, logically, it seems unreasonable for him to hold us responsible for things he knew before hand that we would do.Like Paul puts it in Romans chapter 9, "why does he still blame us?"The answer is that God, in his sovereign will, has chosen to give us human beings a limited sovereignty over our own lives. In other words,God has chosen to give us what is commonly called "free will." Now,either human beings have free will or they do not.
I love the way Thomas Aquinas put it. He said "God, therefore, is the first cause, who moves causes both natural and voluntary. And just as by moving natural causes He does not prevent their actions from being natural, so by moving voluntary causes He does not deprive their actions of being voluntary; but rather is He the cause of this very thing in them, for He operates in each thing according to his own nature." In other words, God did not lose his sovereignty when he gave us voluntary will. This is hard to grasp. I can tell that you struggle with this. Well, so do I! However, one of the clearest teachings of the Bible is that God gives us a choice and that he holds us accountable for that choice. Surely that is the message of Genesis chapter three and an almost unlimited number of other passages. Biblically, God is"responsible" for his actions and we are "responsible" for our actions.God gives us real choice. He does not force us to do right. He does not force us to read the Bible. He does not force knowledge of his will on rebellious people who choose to reject the love he offers. He does give us a conscience and an innate desire to know him, but he does not force us to act on that desire. The God of the Bible is just. On Judgment Day I do not plan on blaming him for my own sinful behaviour.


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हमारे वाॅट्स एप की सदस्यता हेतु

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बाबा जी की कृपा से हमारे चारो वाॅट्स एप ग्रुप 100 सदस्यों से सुसज्जित हो गये है, हम साँईं वार को अपने पाँचवे ग्रुप की शुरुआत बाबा जी की अनुमति से प्रारंभ करेंगे, इच्छुक भक्तजन अपना नाम अपने मोबाइल नंबर के साथ हमारे पास दर्ज करवा सकते है ।

हमारा नंबर है: 9810617373

ॐ श्री साँईं राम जी

आप सभी से अनुरोध है कि कृपया ग्रुप के नियमों का पालन करते हुए इस ग्रुप की मर्यादा को बनाए रखने में हमारी मदद करे।

नियम:-

1 - कृपया किसी भी व्यक्ति विशेष को उसके नाम से संबोधित न करें
2 - किसी भी धर्म के बारे में आपत्ति जनक टिप्पणी न ही करें और न ही पोस्ट फारवर्ड करे
3 - ग्रुप में केवल धार्मिक और आध्यात्मिक पोस्ट ही डाले
4 - एक ही पोस्ट को बार बार पोस्ट न करें जो पोस्ट पहले आ चुकी हैं उसे दोबारा पोस्ट नहीं करे ।
5 - कोई भी ग्रुप का सदस्य किसी अन्य ग्रुप मेम्बर को संपर्क नहीं करेगा,  महिला सदस्यों को तो किसी भी हाल में नहीं, आपमें से कोई भी सदस्य महिला सदस्यों को किसी भी स्थिति में पर्सनल इनबॉक्स में सिंगल मेसेज(ॐ साईं राम) भी नही करेगा।
6 - रात्री 11:15 बजे से प्रातः 3:45 बजे तक कोई भी ग्रुप का सदस्य पोस्ट नहीं कर सकता
7- कोई भी ऐसा पोस्ट ना डालें जिसमें तुरंत उसे लाईक करने के लिए बाध्य किया गया हो और ऐसा न करने पर बुरी खबर की चेतावनी अंकित हो that ia called chain messages
8- पर्सनल चैट भी नहीं करे
9- यदि किसी को आप जन्मदिन या शादी की सालगिरह की बधाई भी देना चाहते हैं तो कृपया उन्हें ग्रुप में बधाई ना दे बल्कि उन्हें उनके पर्सनल मैसेज बाक्स में ही बधाई दी जा सकती है |
10- सभी श्री साँईं बहनों से अनुरोध है कि वह अपने प्रोफाइल में अपनी फोटो न लगाए।
11- आप ग्रुप के प्रोफाइल पिक्चर और स्टेट्स को भी नहीं बदल सकते हैं। कृपया भगवान का मजाक ना उड़ाये।
12- ग्रुप में नियमित रूप से बाबा जी के दर्शन के पोस्ट को बिल्कुल भी नहीं गिना जाएगा । बल्कि यदि आप किसी को बाबा जी के दर्शन पोस्ट करते हुए देखे तो आप यह अधिकार उन्हीं के पास सुरक्षित रखने में सहयोग करने की कृपा करें। सभी सदस्य उसी पोस्ट को रिपीट ना करें।
13- कृपया ग्रुप में किसी से भी अपनी निजी जानकारी सांझा ना करें ।
14- कृपया प्रतिदिन में पोस्ट की संख्या सीमित प्रति सदस्य 10 करने में सहयोग करें (साईं वार को प्रति सदस्य 10पोस्ट करने पर प्रतिबन्ध नही है)। इसमें नियमित रूप से सम्मिलित पोस्ट्स जैसे बाबा जी की आज की वाणी, माता-पिता, बहन-बेटियों और बाबा जी के कैलंडर, जीने की राह, वैदिक ज्ञान, श्री साईं सच्चरित्र एवम बाबा के या प्रेरणात्मक विडियो/ऑडियो, बाबा जी के भजन जैसे दैनिक पोस्ट सीमित पोस्ट में सम्मिलित नहीं है । कृपया लाईक पोस्ट भी नहीं डाले ...

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it also creates multiple posts in the group

आप सभी से अनुरोध है कि यह बाबा जी का ग्रुप हैं और इस ग्रुप में बाबा जी के पोस्ट के अलावा किसी भी भगवान के पोस्ट भी कर सकते हैं। या फिर किसी को किसी मुसीबत के समय ब्लड की जरूरत होती हैं तो आप वह पोस्ट भी इस ग्रुप में शामिल कर सकते हैं। पर किसी भी प्रकार के अन्य पोस्ट इस ग्रुप में स्वीकार नहीं किए जायेंगे।

आप सभी नियमों का पालन करते हुए ग्रुप की मर्यादा को भी बनाए रखे।

नियमों का पालन ना करने वाले सदस्य को बिना किसी सूचना के ग्रुप से निकाला जा सकता है। किसी भी प्रकार की माफी मांगने पर भी दुबारा ग्रुप में शामिल नहीं किया जाएगा।

हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है और हम आपके सहयोग के लिए आपका आभार व्यक्त करते हैं |

आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से आभार प्रकट करते हुए आप सभी को इस बात से भी अवगत करवाना चाहता हूँ कि आज आपने किसी ग्रुप की सदस्यता ग्रहण नहीं की हैं अपितु एक परिवार के अटूट बंधन में बंधे हैं।

श्री साँई राम जी की कृपा से हम सभी आज संकल्प करते हैं कि इस ग्रुप की मर्यादा और परिवार की अखंडता को हम सर्वप्रथम श्री साँई राम जी के समान ही सम्मान देने के लिए प्रतिबद्ध है ।

ग्रुप मे पोस्ट करने के समय का विशेष ध्यान रहे, प्रातःकाल 03:45 बजे से शेज आरती के बाद रात्रि 11:15 तक ही आप इस ग्रुप में पोस्ट कर सकते है ।

साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला

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ॐ सांई राम


साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला
काशी को छोड़ के शिव ने शिर्डी में डेरा डाला


त्याग दिया त्रिशूल कमंडल हाथ में छड़ी उठा ली
ना जाने क्या सोच के झोली काँधे पे लटका ली
गंगा में विसर्जित कर दी शिव ने सर्पों की माला रे
 साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला

शिव है साईं साईं शिव है बात नहीं ये झूठी
भस्म है ये भोले शंकर की कहते हैं जिसको विभूति
जो मांगोगे दे देगा है शिव सा भोला भाला रे
साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला

साईं तपस्वी साईं योगी साईं है सन्यासी
घर घर में है वास उसी का वो है घाट घाट वासी
शिव शम्भू शम्भू जप ले या जप साईं की माला रे
साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला

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सांई की मन भावन मूरत

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ॐ सांई राम




सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

सांई नैनो में झांको तो सदा झलकता प्यारा है
सांई के हाथों में देखो, पलता ये संसार है
अब तो सांई द्वार को छोड़ ओर कहीं ना जाना
सांई नाम की माला का मैं बन जाऊँ एक दाना
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

घर में ना आँगन में ये दिल लगता है ना गुलशन में
मित्रों में परिवार में न साथी के साथ मधुबन में
तू ही रहीम तू ही राम तू ही मेरा कान्हा
क्यों जाऊँ मैं मथुरा काशी क्यों जाऊँ मैं मदीना
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

  
-: आज का साईं सन्देश :-

दया करें सब जीव पर,
नम्र रहे बर्ताव |
ऐसा तू यदि कर सके,
नित्यानंद उछाव ||

एक समय इक रोहिला,
शिर्डी में बस जाय |
वह कर्कश आवाज़ में,
रातों भर चिल्लाय ||

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रुपये की भाग - दौड़ मे अपनो को भुला देता है...

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ॐ सांई राम



बच्चा जब पैदा होता है,
तो उसके वस्त्रों में जेब नहीं होती

और ...

जब मनुष्य मर जाता है, तब उसके कफ़न में भी जेब नहीं होती
जेब तो जन्म और मरण के बीच में आती है,

और

जब से जेब बीच में आने लगी है, तब से मनुष्य रुपये के लिए  सभी अच्छे - बुरे काम करता है,

और

रुपये की भाग - दौड़ मे अपनो को भुला देता है... 

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श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37

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ॐ सांई राम




आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37 

चावड़ी का समारोह
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इस अध्याय में हम कुछ थोड़ी सी वेदान्तिक विषयों पर प्रारम्भिक दृष्टि से समालोचना कर चावड़ी के भव्य समारोह का वर्णन करेंगे ।

प्रारम्भ
............
धन्य है श्रीसाई, जिनका जैसा जीवन था, वैसी ही अवर्णनीय गति और क्रियाओं से पूर्ण नित्य के कार्यक्रम भी । कभी तो वे समस्त सांसारिक कार्यों से अलिप्त रहकर कर्मकाण्डी से प्रतीत होते और कभी ब्रहमानंद और कभी आत्मज्ञान में निमग्न रहा करते थे । कभी वे अनेक कार्य करते हुए भी उनसे असंबन्ध रहते थे । यघपि कभी-कभी वे पूर्ण निष्क्रिय प्रतीत होते, तथापि वे आलसी नहीं थे । प्रशान्त महासागर की नाईं सदैव जागरुक रहकर भी वे गंभीर, प्रशान्त और स्थिर दिखाई देते थे । उनकी प्रकृति का वर्णन तो सामर्थ्य से परे है ।

यह तो सर्व विदित है कि वे बालब्रहमचारी थे । वे सदैव पुरुषों को भ्राता तथा स्त्रियों को माता या बहिन सदृश ही समझा करते थे । उनकी संगति द्घारा हमें जिस अनुपम त्रान की उपलब्धि हुई है, उसकी विस्मृति मृत्युपर्यन्त न होने पाये, ऐसी उनके श्रीचरणों में हमारी विनम्र प्रार्थना है । हम समस्त भूतों में ईश्वर का ही दर्शन करें और नामस्मरण की रसानुभूति करते हुए हम उनके मोहविनाशक चरणों की अनन्य भाव से सेवा करते रहे, यही हमारी आकांक्षा है ।

हेमाडपंत ने अपने दृष्टिकोण द्घारा आवश्यकतानुसार वेदान्त का विवरण देकर चावड़ी के समारोह का वर्णन निम्न प्रकार किया है :-


चावड़ी का समारोह
...................
बाबा के शयनागार का वर्णन पहले ही हो चुका है । वे एक दिन मसजिद में और दूसरे दिन चावड़ी में विश्राम किया करते थे और यह कार्यक्रम उनकी महासमाधि पर्यन्त चालू रहा । भक्तों ने चावड़ी में नियमित रुप से उनका पूजन-अर्चन 10 दिसम्बर, सन् 1909 से आरम्भ कर दिया था । अब उनके चरणाम्बुजों का ध्यान कर, हम चावड़ी के समारोह का वर्णन करेंगे । इतना मनमोहक दृश्य था वह कि देखने वाले ठिठक-ठिठक कर रह जाते थे और अपनी सुध-बुध भूल यही आकांक्षा करते रहते थे कि यह दृश्य कभी हमारी आँखों से ओझल न हो । जब चावड़ी में विश्राम करने की उनकी नियमित रात्रि आती तो उस रात्रि को भक्तोंका अपार जन-समुदाय मसजिद के सभा मंडप में एकत्रित होकर घण्टों तक भजन किया करता था । उस मंडप के एक ओर सुसज्जित रथ रखा रहते था और दूसरी ओर तुलसी वृन्दावन था । सारे रसिक जन सभा-मंडप मे ताल, चिपलिस, करताल, मृदंग, खंजरी और ढोल आदि नाना प्रकार के वाघ लेकर भजन करना आरम्भ कर देते थे । इन सभी भजनानंदी भक्तों को चुम्बक की नाई आकर्षित करने वाले तो श्री साईबाबा ही थे ।

मसजिद के आँगन को देखो तो भक्त-गण बड़ी उमंगों से नाना प्रकार के मंगल-कार्य सम्पन्न करने में संलग्न थे । कोई तोरण बाँधकर दीपक जला रहे थे, तो कोई पालकी और रथ का श्रृंगार कर निशानादि हाथों में लिये हुए थे । कही-कही श्री साईबाबा की जयजयकार से आकाशमंडल गुंजित हो रहा था । दीपों के प्रकाश से जगमगाती मसजिद ऐसी प्रतीत हो रही थी, मानो आज मंगलदायिनी दीपावली स्वयं शिरडी में आकर विराजित हो गई हो । मसजिद के बाहर दृष्टिपात किया तो द्घार पर श्री साईबाबा का पूर्ण सुसज्जित घोड़ा श्यामसुंदर खड़ा था । श्री साईबाबा अपनी गादी पर शान्त मुद्रा में विराजित थे कि इसी बीच भक्त-मंडलीसहित तात्या पटील ने आकर उन्हें तैयार होने की सूचना देते हुए उठने में सहायता की । घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण तात्या पाटील उन्हें मामा कहकर संबोधित किया करते थे । बाबा सदैव की भाँति अपनी वही कफनी पहिन कर बगल में सटका दबाकर चिलम और तम्बाखू संग लेकर धन्धे पर एक कपड़ा डालकर चलने को तैयार हो गये । तभी तात्या पाटील ने उनके शीश पर एक सुनहरा जरी का शेला डाल दिया । इसके पश्चात् स्वयं बाबा ने धूनी को प्रज्वलित रखने के लिये उसमें कुछ लकड़ियाँ डालकर तथा धूनी के समीप के दीपक को बाँयें हाथ से बुझाकर चावड़ी को प्रस्थान कर दिया । अब नाना प्रकार के वाघ बजने आरम्भ हो गये और उनसे भाँति-भाँति के स्वर निकलने लगे । सामने रंग-बिरंगी आतिशबाजी चलने लगी और नर-नारी भाँति-भाँति के वाघ बजाकर उनकी कीर्ति के भजन गाते हुए आगे-आगे चलने लगे । कोई आनंद-विभोर हो नृत्य करने लगा तो कोई अनेक प्रकार के ध्वज और निशान लेकर चलने लगे । जैसे ही बाबा ने मसजिद की सीढ़ी पर अपने चरण रखे, वैसे ही भालदार ने ललकार कर उनके प्रस्थान की सूचना दी । दोनों ओर से लोग चँवर लेकर खड़े हो गये और उन पर पंखा झलने लगे । फिर पथ पर दूर तक बिछे हुए कपड़ो के ऊपर से समारोह आगे बढ़ने लगा । तात्या पाटील उनका बायाँ तथा म्हालसापति दायाँ हाथ पकड़ कर तथा बापूसाहेब जोग उनके पीछे छत्र लेकर चलने लगे । इनके आगे-आगे पूर्ण सुसज्जित अश्व श्यामसुंदर चल रहा था और उनके पीछे भजन मंडली तथा भक्तों का समूह वाघों की ध्वनि के संग हरि और साई नाम की ध्वनि, जिससे आकाश गूँज उठता था, उच्चारित करते हुए चल रहा था । अब समारोह चावड़ी के कोने पर पहुँचा और सारा जनसमुदाय अत्यन्त आनंदित तथा प्रफुल्लित दिखलाई पड़ने लगा । जब कोने पर पहुँचकर बाबा चावड़ी के सामने खड़े हो गये, उस समय उनके मुख-मंडल की दिव्यप्रभा बड़ी अनोखी प्रतीत होने लगी और ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो अरुणोदय के समय बाल रवि क्षितिज पर उदित हो रहा हो । उत्तराभिमुख होकर वे एक ऐसी मुद्रा में खड़े गये, जैसे कोई किसी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा हो । वाघ पूर्ववत ही बजते रहे और वे अपना दाहिना हाथ थोड़ी देर ऊपर-नीचे उठाते रहे । वादक बड़े जोरों से वाघ बजाने लगे और इसी समय काकासाहेब दीक्षित गुलाल और फूल चाँदी की थाली में लेकर सामने आये और बाबा के ऊपर पुष्प तथा गुलाल की वर्षा करने लगे । बाबा के मुखमंडल पर रक्तिम आभा जगमगाने लगी और सब लोग तृप्त-हृदय हो कर उस रस-माधुरी का आस्वादन करने लगे । इस मनमोहक दृश्य और अवसक का वर्णन शब्दों में करने में लेखनी असमर्थ है । भाव-विभोर होकर भक्त म्हालसापति तो मधुर नृत्य करने लगे, परन्तु बाबा की अभंग एकाग्रता देखकर सब भक्तों को महान् आश्चर्य होने लगा । एक हाथ में लालटेन लिये तात्या पाटील बाबा के बाँई ओर और आभूषण लिये म्हालसापति दाहिनी ओर चले । देखो तो, कैसे सुन्दर समारोह की शोभा तथा भक्ति का दर्शन हो रहा है । इस दृश्य की झाँकी पाने के लिये ही सहस्त्रों नर-नारी, क्या अमीर और क्या फकी, सभी वहाँ एकत्रित थे । अब बाबा मंद-मंद गति से आगे बढ़ने लगे और उनके दोनों ओर भक्तगम भक्तिभाव सहित, संग-संग चले लगे और चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण दिखाई पड़ने लगा । सम्पूर्ण वायुमंडल भी खुशी से झूम उठा और इस प्रकार समारोह चावड़ी पहुँचा । अब वैसा दृश्य भविष्य में कोई न देख सकेगा । अब तो केवल उसकी याद करके आँखों के सम्मुख उस मनोरम अतीत की कल्पना से ही अपने हृदय की प्यास शान्त करनी पड़ेगी ।


चावड़ी की सजावट भी अति भी अति उत्तम प्रकार से की गई थी । उत्तम बढ़िया चाँदनी, शीशे और भाँति-भाँति के हाँड़ी-लालटेन (गैस बत्ती) लगे हुए थे । चावड़ी पहुँचने पर तात्या पाटील आगे बढ़े और आसन बिछाकर तकिये के सहारे उन्होंने बाबा को बैठाया । फिर उनको एक बढ़िया अँगरखा पहिनाया और भक्तों ने नाना प्रकार से उनकी पूजा की, उन्हें स्वर्ण-मुकुट धारण कराया, तथा फूलों और जवाहरों की मालाएँ उनके गले में पहिनाई । फिर ललाट पर कस्तूरी का वैष्णवी तिलक तथा मध्य में बिन्दी लगाकर दीर्घ काल तक उनकी ओर अपलक निहारते रहे । उनके सिर का कपड़ा बदल दिया गया और उसे ऊपर ही उठाये रहे, क्योंकि सभी शंकित थे कि कहीं वे उसे फेक न दे, परन्तु बाबा तो अन्तर्यामी थे और उन्होंने भक्तों को उनकी इच्छानुसार ही पूजन करने दिया । इन आभूषणों से सुसज्जित होने के उपरान्त तो उनकी शोभा अवर्णनीय थी ।

नानासाहेब निमोणकर ने वृत्ताकार एक सुन्दर छत्र लगाया, जिसके केंद्र में एक छड़ी लगी हुई थी । बापूसाहेब जोग ने चाँदी की एक सुन्दर थाली में पादप्रक्षालन किया और अघ्र्य देने के पश्चात् उत्तम विधि से उनका पूजन-अर्चन किया और उनके हाथों में चन्दन लगाकर पान का बीड़ा दिया । उन्हें आसन पर बिठलाया गया । फिर तात्या पाटील तथा अन्य सब भक्त-गण उनके श्री-चरणों पर अपने-अपने शीश झुकाकर प्रणाम करने लगे । जब वे तकिये के सहारे बैठ गये, तब भक्तगण दोनों ओर से चँवर और पंखे झलने लगे । शामा ने चिलम तैयार कर तात्या पाटील को दी । उन्होंने एक फूँक लगाकर चिलम प्रज्वलित की और उसे बाबा को पीने को दिया । उनके चिलम पी लेने के पश्चात फिर वह भगत म्हालसापति को तथा बाद में सब भक्तों को दी गई । धन्य है वह निर्जीव चिलम । कितना महान् तप है उसका, जिसने कुम्हार द्घार पहिले चक्र पर घुमाने, धूप में सुखाने, फिर अग्नि में तपाने जैसे अनेक संस्कार पाये । तब कहीं उसे बाबा के कर-स्पर्श तथा चुम्बन का सौभाग्य प्राप्त हुआ । जब यह सब कार्य समाप्त हो गया, तब भक्तगण ने बाबा को फूलमालाओं से लाद दिया और सुगन्धित फूलों के गुलदस्ते उन्हें भेंट किये । बाबा तो वैराग्य के पूर्ण अतार थे और वे उन हीरे-जवाहरात व फूलों के हारों तथा इस प्रकार की सजधज में कब अभिरुचि लेने वाले थे । परन्तु भक्तों के सच्चे प्रेमवश ही, उनके इच्छानुसार पूजन करने में उन्होंने कोई आपत्ति न की । अन्त में मांगलिक स्वर में वाघ बजने लगे और बापूसाहेब जोग ने बाबा की यथाविधि आरती की । आरती समाप्त होने पर भक्तों ने बाबा को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा लेकर सब एक-एक करके अपने घर लौटने लगे । तब तात्या पाटील ने उन्हें चिनम पिलाकर गुलाब जल, इत्र इत्यादि लगाया और विदा लेते समय एक गुलाब का पुष्प दिया । तभी बाबा प्रेमपूर्वक कहने लगे के तात्या, मेरी देखभाल भली भाँति करना । तुम्हें घर जाना है तो जाओ, परन्तु रात्रि में कभी-कभी आकर मुझे देख भी जाना । तब स्वीकारात्मक उत्तर देकर तात्या पाटील चावड़ी से अपने घर चले गये । फिर बाबा ने बहुत सी चादरें बिछाकर स्वयं अपना बिस्तर लगाकर विश्राम किया ।

अब हम भी विश्राम करें और इस अध्याय को समाप्त करते हुये हम पाठकों से प्रार्थना करते है कि वे प्रतिदिन शयन के पूर्व श्री साईबाबा और चावड़ी समारोह का ध्यान अवश्य कर लिया करें ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
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शिर्डी वाले सांई बाबा

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ॐ सांई राम




शिर्डी वाले सांई बाबा तू ही है एक हमारा
जो भी दर पर आता तेरे मिलता उसे सहारा
तेरी लग्न लगाके जोत जलाके भूल गया भूल गया
ओ मैं तो भूल गया भूल गया भूल गया
ओ सांई बाबा सारी दुनिया भूल गया

सुबह शाम शिर्डी वाले मैं फेरूँ तेरी माला
तुझमें मन्दिर तुझमें  मस्जिद तुझमें ही गुरुद्वारा
तू है सारे जग का मालिक तू सारे जग का रखवाला
तेरी भक्ति में ओ सांई भूल गया भूल गया भूल गया रे
ओ मैं तो भूल गया भूल गया भूल गया
ओ सांई बाबा सारी दुनिया गया

अंधियारे को दूर करे पानी से दीप जलाये
तेरे दर पे जो आये उसे सच्ची राह दिखाये
उसको सब कुछ भी मिल जाये जो तुझमें खो जाये
शिरडी वाले सांई बाबा दुनिया भूल गया
भूल गया भूल गया मैं
ओ मैं तो भूल गया भूल गया भूल गया
ओ सांई बाबा सारी दुनिया भूल गया


-: आज का साईं सन्देश :-

चीख चीख अल्लाह का,
अलख जगाता जाय ।
शिर्डी वासी कष्ट में,
नींद न उनको आय ।।

विनती साईं से करें,
दें उनको समझाय ।
श्री साईं कहने लगे,
चिन्ता करियो नाय ।।


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गुरु अरदास

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ॐ सांई राम




जिथ बिठलावे  तित  ही  बैठूँ
जो  पहरावे  सो  ही  पहरूँ
मेरी  उनकी  प्रीत  पुरानी
बेचे  तो  बिक  जाऊँ

गुरु  मेरी  पूजा गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार ब्रह्म गुरु  भगवंत

गुरु  मेरा  देव  अलख   अभेऊ
गुरु  मेरा  देव  अकाल  अभेऊ
सर्व  पूज  चरण  गुरु  सेऊ

गुरु  मेरी  पूजा  गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार ब्रह्म  गुरु  भगवंत


गुरु  का  दर्शन, देख  देख  जीवा
गुरु  के  चरण, धोये  धोये  पीवाँ
गुरु  बिन  अवर, नहीं  में  थाओं
आन  दिन  जपौं, गुरु  गुरु  नाओं

गुरु  मेरी  पूजा  गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म  गुरु  भगवंत


गुरु  मेरा  ज्ञान, गुरु  ही  दे  ध्यान
गुरु  गोपाल, मूरत  भगवान
गुरु  मेरी  पूजा

गुरु  मेरी  पूजा गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म गुरु  भगवंत


ऐसे  गुरु  को, बल  बल  जाइये
आप  मुकदे, मोहे  तारे
गुरु  की  शरण, रहूँ  कर  जोड़
गुरु  बिना  मैं, न  ही  होर

गुरु  मेरी  पूजा  गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म गुरु  भगवंत


गुरु  बहुत  तारे  भवपार
गुरु  सेवा  जम  ते  छुटकारे

गुरु  मेरी  पूजा गुरु  गोविन्द गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म गुरु  भगवंत


अंधकार  में  गुरु  मन्त्र  उजारा
गुरु  के  संग  सगल  मिस्तारा

गुरु  मेरी  पूजा गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म गुरु  भगवंत


न  मैं  सोणी, मैं  किसदा  मान  करिसा
चारो  चुक्का  मेरियां, चिकड़  भारियां
मै किदे  किदे  मल  मल  दोस्सां
एक  साबुन  थोड़ा, उतों  मैल  घनेरी
मैं  किदे  किदे  कपडे  धोसां
बुलेशा  मुर्शद  जे  मैं  न  मिलेयो  मैं  बैठ   किनारे  रोसां
गुरु  पूरा  पाइये  बड़भागी
गुरु  की  सेवा  देख  न  लागी

गुरु  मेरी  पूजा  गुरु  गोविन्द  गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म  गुरु  भगवंत


गुरु  का  शब्द  न  मिटे  कोई
गुरु  नानक  नानक  हर  सोयी 

गुरु  मेरी  पूजा गुरु  गोविन्द गुरु  मेरा  पार  ब्रह्म गुरु  भगवंत

-: आज का साईं सन्देश :-

पत्नी उसकी बहुत बुरी,
कष्ट उसे पहुँचाय ।
रोहिला की आवाज़ से,
पास न उसके आय ।।

दुर्विचार पत्नी यहाँ,
असल न पत्नी कोय ।
बाबा की हर बात में,
गूढ़ अर्थ ही होय ।।
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आई साईं की पालकी

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ॐ सांई राम


  
सारे रस्ते पे फूल बिछाओ, लाओ इत्र गुलाल छिड़काओ
लगाओ पालकी में कान्धा लगाओ, रे लगाओ रे लगाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी

साईं बाबा को चन्दन लगाओ, इनके चरणों में शीश झुकाओ
आओ पालकी को फूलों से सजाओ रे सजाओ रे सजाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी

साईं बाबा की बोलो जैकार, भक्तों पे अपने करते उपकार
आओ बाबा का आशीष पाओ रे पाओ रे पाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी

जो भी पालकी में कान्धा लगाए, वो तो रोज़ दिवाली मनाये
आओ पालकी को घर घर ले जाओ रे आओ रे आओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी

सारे रस्ते पे फूल बिछाओ, लाओ इत्र गुलाल छिड़काओ
लगाओ पालकी में कान्धा लगाओ, रे लगाओ रे लगाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी


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सांई दया करना

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ॐ सांई राम




सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
श्रद्धा और सबुरी सांई
सब का मालिक एक ही सांई
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना

मैं निर्धन हूँ मैं निर्बल हूँ
दाता सांई मैं भिक्षुक हूँ
सांई शक्ति देना मेरे सांई कृपा करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना

मोहमाया से दूर ही रखना
पाप करम से दूर ही रखना
भजन चरण शरण में रखना
मेरे सांई कृपा करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
-: आज का साईं सन्देश :-
सहन करो इस कारणे,
शिर्डी करो निवास ।
हो ईश्वर आराधना,
साईं पे विश्वास ।।
मैं ही सब में व्याप्त हूँ,
श्री साईं समझाय ।।
जड़ चेतन जो भी रहें,
सब में मुझको पाय ।।
 

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कोई नहीं है जग में मेरा

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ॐ साईं राम



  कोई  नहीं  है   जग  में  मेरा,
मुझको  सहारा  साईं  तेरा,
ॐ  साईं  राम  साईं  श्याम  जय  जय  साईं  राम 

वो  पत्थर  भी  बन  गया  पारस,
जिसपे  डाला  साईं  ने  डेरा,
कोई  नहीं  है   जग  में  मेरा,
मुझको  सहारा  साईं  तेरा 
ॐ  साईं  राम  साईं  श्याम  जय  जय  साईं  राम 

दीप  जले  आई  दिवाली 
तुम  आये  तो  बाबा हुआ  सवेरा 
मुखको  सहारा  साईं  तेरा,
कोई  नहीं  है  जग  में  मेरा 
ॐ  साईं  राम  साईं  श्याम  जय  जय  साईं  राम 

तेरे  दम  से  ही  जीवन  है,
जग  में  बाबा  तू  ही  मेरा,
मुझको  सहारा  साईं  तेरा,
कोई  नहीं  है  जग  में  मेरा 
ॐ  साईं  राम  साईं  श्याम  जय  जय  साईं  राम 

छोड़  के  दुनिया  तुझको  पाया,
मेरे  दिल  पे   तेरा  पहरा,
मुझको  सहारा  साईं  तेरा,
कोई  नहीं  है  जग  में  मेरा 
ॐ  साईं  राम  साईं  श्याम  जय  जय  साईं  राम 

दासी  ये  आंचल  तेरी  कहती 
साईं  की  मैं   हूँ  साईं  मेरा 
मुझको  सहारा  साईं  तेरा,
कोई  नहीं  है  जग  में  मेरा 
ॐ  साईं  राम  साईं  श्याम  जय  जय  साईं  राम

-: आज का साईं सन्देश :-
  
मैं हूँ सब स्वरूप में,
माया बड़ी अपार ।
जीवन दूं पालन करूँ,
और करूँ संहार ।।

बाबाजी की बात सुन,
मन हेमांड विचार ।
साईं मेरे सद्गुरु,
सब वेदों का सार ।।
     
  
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साई की है महिमा इतनी न्यारी

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ॐ सांई राम




साई की है महिमा इतनी न्यारी
जिस पर नाज़ करती है यह दुनिया सारी


तेरी कृपा की है अब आशा
तेरे रूप को देखने की है अभिलाषा
कब हमारा मनोरत सिद्ध होगा
कब इन आखो को तेरा दर्श होगा
तुझ में है यह जग समाया
तेरे दर से न कोई खाली आया
सबके ह्रदय की बात तू जाने
सबके मन में तू विराजे
कण कण में तेरा वास है
तेरी करुना का न कोई पार है
तेरी महिमा है इतनी न्यारी
जिसपे नाज़ करती है यह दुनिया सारी.......
ॐ साई राम
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श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 38

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ॐ साँई राम


आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 38

बाबा की हंड़ी, नानासाहेब द्अघारा देव-मूर्ति की उपेक्षा, नैवेघ वितरण, छाँछ का प्रसाद ।
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गत अध्याय में चावड़ी के समारोह का वर्णन किया गया है । अब इस अध्याया में बाबा की हंडी तथा कुछ अन्य विषयों का वर्णन होगा ।


प्रस्तावना
............

हे सदगुरु साई । तुम धन्य हो । हम तुम्हें नमन करते है । तुमने विश्व को सुख पहुँचाय और भक्तों का कल्याण किया । तुम उदार हृदय हो । जो भक्तगण तुम्हारे अभय चरण-कमलों में अपने को समर्पित कर देते है, तुम उनकी सदैव रक्षा एवं उद्घार किया करते हो । भक्तों के कल्याण और परित्राण के निमित्त ही तुम अवतार लेते हो । ब्रहम के साँचे में शुद्घ आत्मारुपी द्रव्य ढाला गया और उसमें से ढलकर जो मूर्ति निकली, वही सन्तों के सन्त श्री साईबाबा है । साई स्वयं ही आत्माराम और चिरआनन्द धाम है । इस जीवन के समस्त कार्यों को नश्वर जानकर उन्होंने भक्तों को निष्काम और मुक्त किया ।


बाबा की हंड़ी
.............


मानव धर्म-शास्त्र में भिन्न-भिन्न युगों के लिये भिन्न-भिन्न साधनाओं का उन्नेख किया गया है । सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्घापर में यज्ञ और कलियुग में दान का विशेष माहात्म्य है । सर्व प्रकार के दानों में अन्नदान श्रेष्ठ है । जब मध्याहृ के समय हमें भोजन प्राप्त नहीं होता, तब हम विचलित हो जाते है । ऐसी ही स्थिति अन्य प्राणियों की अनुभव कर जो किसी भिक्षुक या भूखे को भोजन देता है, वही श्रेष्ठ दानी है । तैत्तिरीयोपनिषद् में लिखा है कि अन्न ही ब्रहमा है और उसीसे सब प्राणियों की उत्पत्ति होती है तथा उससे ही वे जीवित रहते है और मृत्यु के उपरांत उसी में लय भी हो जाते है । जब कोई अतिथि दोपहर के समय अपने घर आता है तो हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम उसका अभिन्नदन कर उसे भोजन करावे । अन्य दान जैसे-धन, भूमि और वस्त्र इत्यादि देने में तो पात्रता का विचार करना पड़ता है, परन्तु अन्न के लिये विशेष सोचविचार की आवश्यकता नहीं है । दोपहर के समय कोई भी अपने द्घार पर आवे, उसे शीघ्रभोजन कराना हमारा परम कर्त्व्य है । प्रथमतः लूले, लंगड़े, अन्धे या रुग्ण भिखारियों को, फिर उन्हें, जो हाथ पैर से स्वस्थ है और उनसभी के बाद अपने संबन्धियों को भोजन कराना चाहिये । अन्य सभी की अपेक्षा पंगुओं को भोजन कराने का मह्त्व अधिक है । अन्नदान के बिना अन्य सब प्रकार के दान वैसे ही अपूर्ण है, जैसे कि चन्द्रमा बिना तारे, पदक बिना हार, कलश बिना मन्दिर, कमलरहित तलाब, भक्तिरहित, भजन, सिन्दूररहित सुहागिन, मधुर स्वरविहीन गायन, नमक बिना पकवान । जिस प्रकार अन्य भोज्य पदार्थों में दाल उत्तम समझी जाती है, उसी प्रकार समस्त दानों में अन्नदान श्रेष्ठ है । अब देखें कि बाबा किस प्रकार भोजन तैयार कराकर उसका वितरण किया करते थे ।

हम पहले ही उल्लेख कर चुके है कि बाबा अल्पाहारी थे और वे थोड़ा बहुत जो कुछ भी खाते थे, वह उन्हें केवल दो गृहों से ही भिक्षा में उपलब्ध हो जाया करता था । परन्तु जब उनके मन में सभी भक्तों को भोजन कराने की इच्छा होती तो प्रारम्भ से लेकर अन्त तक संपूर्ण व्यवस्था वे स्वयं किया करते थे । वे किसी पर निर्भर नहीं रहते थे और न ही किसी को इस संबंध में कष्ट ही दिया करते थे । प्रथमतः वे स्वयं बाजार जाकर सब वस्तुएं – अनाज, आटा, नमक, मिर्ची, जीरा खोपरा और अन्य मसाले आदि वस्तुएँ नगद दाम देकर खरीद लाया करते थे । यहाँ तक कि पीसने का कार्य भी वे स्वयं ही किया करते थे । मसजिद के आँगन में ही एक भट्टी बनाकर उसमें अग्नि प्रज्वलित करके हंडी के ठीक नाप से पानी भर देते थे । हंडी दो प्रकार की थी – एक छोटी और दूसरी बड़ी । एक में सौ और दूसरी में पाँच सौ व्यक्तियों का भोजन तैयार हो सकता था । कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे । कभी-कभी दाल और मुटकुले भी बना लेते थे । पत्थर की सिल पर महीन मसाला पीस कर हंडी में डाल देते थे । भोजन रुचिकर बने, इसका वे भरसक प्रयत्न किया करते थे । ज्वार के आटे को पानी में उबाल कर उसमें छाँछ मिलाकर अंबिल (आमर्टी) बनाते और भोजन के साथ सब भक्तों को समान मात्रा में बाँट देते थे । भोजन ठीक बन रहा है या नहीं, यह जानने के लिये वे अपनी कफनी की बाँहें ऊपर चढ़ाकर निर्भय हो उतबलती हंडी में हाथ डाल देते और उसे चारों ओर घुमाया करते थे । ऐसा करने पर भी उनके हाथ पर न कोई जलन का चिन्ह और न चेहरे पर ही कोई व्यथा की रेखा प्रतीत हुआ करती थी । जब पूर्ण भोजन तैयार हो जाता, तब वे मसजिद सम बर्तन मँगाकर मौलवी से फातिहा पढ़ने को कहते थे, फिर वे म्हालसापति तथा तात्या पाटील के प्रसाद का भाग पृथक् रखकर शेष भोजन गरीब और अनाथ लोगों को खिलाकर उन्हें तृप्त करते थे । सचमुच वे लोग धन्य थे । कितने भाग्यशाली थे वे, जिन्हें बाबा के हाथ का बना और परोसा हुआ भोजन खाने को प्राप्त हुआ ।



यहाँ कोई यह शंका कर सकता है कि क्या वे शाकाहारी और मांसाहारी भोज्य पदार्थों का प्रसाद सभी को बाँटा करते थे । इसका उत्तर बिलकुल सीधा और सरल है । जो लोग मांसाहारी थे, उन्हें हण्डी में से दिया जाता था तथा शाकाहारियों को उसका स्पर्श तक न होने देते थे । न कभी उन्होंने किसी को मांसाहार का प्रोत्साहन ही दिया और न ही उनकी आंतरिक इच्छा थी कि किसी को इसके सेवन की आदत लग जाये । यह एक अति पुरातन अनुभूत नियम है कि जब गुरुदेव प्रसाद वितरण कर रहे हो, तभी यदि शिष्य उसके ग्रहण करने में शंकित हो जाय तो उसका अधःपतन हो जाता है । यह अनुभव करने के लिये कि शिष्य गण इस नियम का किस अंश तक पालन करते है, वे कभी-कभी परीक्षा भी ले लिया करते थे । उदाहरँणार्थ एक एकादशी के दिन उन्होंने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ मांस खरीद लाने को कहा । दादा केलकर पूरे कर्मकांडी थे और प्रायः सभी नियमों का जीवन में पालन किया करते थे । उनकी यह दृढ़ भावना थी कि द्रव्य, अन्न और वस्त्र इत्यादि गुरु को भेंट करना पर्याप्त नहीं है । केवल उनकी आज्ञा ही शीघ्र कार्यान्वित करने से वे प्रसन्न हो जाते है । यही उनकी दक्षिणा है । दादा शीघ्र कपडे पहिन कर एक थैला लेकर बाजार जाने के लिये उघत हो गये । तब बाबा ने उन्हें लौटा लिया और कहा कि तुम न जाओ, अन्य किसी को भेज दो । दादा ने अपने नौकर पाण्डू को इस कार्य के निमित्त भेजा । उसको जाते देखकर बाबा ने उसे भी वापस बुलाने को कहकर यह कार्यक्रम स्थगित कर दिया ।

ऐसे ही एक अन्य अवसर पर उन्होंने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है । दादा ने यों ही मुंह देखी कह दिया कि अच्छा है । तब वे कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखों से ही देखा है और न जिहा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है । थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो । बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन में डालकर बोले – थोड़ासा इसमें से निकालो और अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो । जब माँ का सच्चा प्रेम बच्चे पर उमड़ आता है, तब माँ उसे चिमटी भरती है, परन्तु उसका चिल्लाना या रोना देखकर वह उसे अपने हृदय से लगाती है । इसी प्रकार बाबा ने सात्विक मातृप्रेम के वश हो दादा का इस प्रकार हाथ पकड़ा । यथार्थ में कोई भी सन्त या गुरु कभी भी अपने कर्मकांडी शिष्य को वर्जित भोज्य के लिये आग्रह करके अपनी अपकीर्ति कराना पसन्द न करेगा ।

इस प्रकार यह हंडी का कार्यक्रम सन् 1910 तक चला और फिर स्थगित हो गया । जैसा पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है, दासगणू ने अपने कीर्तन द्घारा समस्त बम्बई प्रांत में बाबा की अधिक कीर्ति फैलई । फलतः इस प्रान्त से लोगों के झुंड के झुंड शिरडी को आने लगे और थोड़े ही दिनों में शिरडी पवित्र तीर्थ-क्षेत्र बन गया । भक्तगण बाबा को नैवेघ अर्पित करने के लिये नाना प्रकारके स्वादिष्ट पदार्थ लाते थे, जो इतनी अधिक मात्रा में एकत्र हो जाता था कि फकीरों और भिखारियों को सन्तोषपूर्वक भोजन कराने पर भी बच जाता था । नैवेघ वितरण करने की विधि का वर्णन करने से पूर्व हम नानासाहेब चाँदोरकर की उस कथा का वर्णन करेंगे, जो स्थानीय देवी-देवताओं और मूर्तियों के प्रति बाबा की सम्मान-भावना की घोतक है ।

नानासाहेब द्घारा देव-मूर्ति की उपेक्षा
....................................


कुछ व्यक्ति अपनी कल्पना के अनुसार बाबा को ब्राहमण तथा कुछ उन्हें यवन समझा करते थे, परन्तु वास्तव में उनकी कोई जाति न थी । उनकी और ईश्वर की केवल एक जाति थी । कोई भी निश्चयपूर्वक यह नहीं जानता कि वे किस कुल में जनमें और उनके मातापिता कौन थे । फिर उन्हें हिन्दू या यवन कैसे घोषित किया जा सकता है । यदि वे यवन होते तो मसजिद में सदैव धूनी और तुलसी वृन्दावन ही क्यों लागते और शंख, घण्टे तथा अन्य संगीत वाघ क्यों बजने देते । हिन्दुओं की विविध प्रकार की पूजाओं को क्यों स्वीकार करते । यदि सचमुच यवन होते तो उनके कान क्यों छिदे होते तथा वे हिन्दू मन्दिरों का स्वयं जीर्णोद्घार क्यों करवाते । उन्होंने हिन्दुओं की मूर्तियों तथा देवी-देवताओ की जरा सी उपेक्षा भी कभी सहन नहीं की ।

एक बार नानासाहेब चाँदोरक अपने साढू (साली के पति) श्री बिनीवले के साथ शिरडी आये । जब वे मसजिद में पहुँचे, बाबा वार्तालाप करते हुए अनायास ही क्रोधित होकर कहने लगे कि तुम दीर्घकाल से मेरे सान्ध्य में हो, फिर भी ऐसा आचरण क्यों करते हो । नानासाहेब प्रथमतः इन शब्दों का कुछ भी अर्थ न समझ सके । अतः उन्होंने अपना अपराध समझाने की प्रार्थना की । प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि तुम कब कोपरगाँव आये और फिर वहाँ से कैसे शिरडी आ पहुँचे । तब नानासाहेब को अपनी भूल तुरन्त ही ज्ञात हो गयी । उनका यह नियम था कि शिरडी आने से पूर्व वे कोपरगाँव में गोदावरी के तट पर स्थित श्री दत्त का पूजन किया करते थे । परन्तु रिश्तेदार के दत-उपासक होने पर भी इस बार विलम्ब होने के भय से उन्होंने उनको भी दत्त मंदिर में जाने से हतोत्साहित किया और वे दोनों सीधे शिरडी चले आये थे । अपना दोष स्वीकार कर उन्होंने कहा कि गोदावरी स्नान करते समय पैर में एक बड़ा काँटा चुभ जाने के कारण अधिक कष्ट हो गया था । बाबा ने काह कि यह तो बहुत छोटासा दंड था और उन्हें भविष्य में ऐसे आचरण के लिये सदैव सावधान रहने की चेतावनी दी ।
नैवेघ-वितरण
..............


अब हम नैवेघ-वितरण का वर्णन करेंगे । आरती समाप्त होने पर बाबा से आर्शीवाद तथा उदी प्राप्त कर जब भक्तगण अपने-अपने घर चले जाते, तब बाबा परदे के पीछे प्रवेश कर निम्बर के सहारे पीठ टेककर भोजन के लिये आसन ग्रहण करते थे । भक्तों की दो पंक्तियाँ उनके समीप बैठा करती थी । भक्तगण नाना प्रकार के नैवेघ, पीरी, माण्डे, पेड़ा बर्फी, बांसुदीउपमा (सांजा) अम्बे मोहर (भात) इत्यादि थाली में सजा-सजाकर लाते और जब तक वे नैवेघ स्वीकार न कर लेते, तब तक भक्तगण बाहर ही प्रतीक्षा किया करते थे । समस्त नैवेघ एकत्रित कर दिया जाता, तब वे स्वयं ही भगवान को नैवेघ अर्पण कर स्वयं ग्रहण करते थे । उसमें से कुछ भाग बाहर प्रतीक्षा करने वालों को देकर शेष भीतर बैठे हुए भक्त पा लिया करते थे । जब बाबासबके मध्य में आ विराजते, तब दोनों पंक्तियों में बैठे हुए भक्त तृप्त होकर भोजन किया करते थे । बाबा प्रायः शामा और निमोणकर से भक्तों को अच्छी तरह भोजन कराने और प्रत्येक की आवश्यकता का सावधानीपूर्वक ध्यान रखने को कहते थे । वे दोनों भी इस कार्य को बड़ी लगन और हर्ष से करते थे । इस प्रकार प्राप्त प्रत्येक ग्रास भक्तों को पोषक और सन्तोषदायक होता था । कितना मधुर, पवित्र, प्रेमरसपूर्ण भोजन था वह । सदा मांगलिक और पवित्र ।

छाँछ (मठ्ठा) का प्रसाद
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इस सत्संग में बैठकर एक दिन जब हेमाडपंत पूर्णतः भोजन कर चुके, तब बाबा ने उन्हें एक प्याला छाँछ पीने को दिया । उसके श्वेत रंग से वे प्रसन्न तो हुए, परन्तु उदर में जरा भी गुंजाइश न होने के कारण उन्होंने केवल एक घूँट ही पिया । उनका यह उपेक्षात्मक व्यवहार देखकर बाबा ने कहा कि सब पी जाओ । ऐसा सुअवसर अब कभी न पाओगे । तब उन्होंने पूरी छाँछ पी ली, किन्तु उन्हे बाबा के सांकेतिक वचनों का मर्म शीघ्र ही विदित हो गया, क्योंकि इस घटना के थोड़े दिनों के पश्चात् ही बाबा समाधिस्थ हो गये ।

पाठकों । अब हमें अवश्य ही हेमाडपंत के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये, क्योंकि उन्होंने तो छाँछ का प्याला पिया, परन्तु वे हमारे लिये यथेष्ठ मात्रा में श्री साई-लीला रुपी अमृत दे गये । आओ, हम उस अमृत के प्याले पर प्याले पीकर संतुष्ट और सुखी हो जाये ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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नाम जपने से साईं न माने

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ॐ सांई राम



मक्के  गया  गल  मुकदी  नइयों

भावें सौ सौ जुम्मा  पढ़  आइये 

गंगा  गया  गल  मुकदी  नइयों,

भावें सौ  सौ  गोते  खाइये,

गायाँ  गायाँ  गल  मुकदी  नइयों

भावें सौ  सौ  पिंड  भर  आइये,

वे  बुल्लेशाह  गल  ताइयों  मुकदी 

जदों मैं  नु  दिलों  गवाईये ,



नाम  जपने  से  साईं  न  माने,

सर  झुकाने  से  साईं  न  माने,

दिल  दुखाया  जो  तुमने  किसी का 

शिर्डी  जाने  से  साईं  न  माने,



नाम  जपने  से  साईं  न  माने,

सर  झुकाने  से  साईं  न  माने,



मन  में  कुछ  है  और  कुछ  है  ज़ुबां  पे,

कैसा  धोखा  ये  दुनिया  को  देते,

ऐसे  झूठों  से  साईं  न  माने,

मन  के  कालों  से  साईं  न  माने,



साईं  बाबा  की  जपते  है  माला,

करते  नित  ही  बड़ा  ये  घोटाला

साईं  सेवा  का पीटें ढीनडोरा 

ऐसे  लोगों  को  साईं  जी  जाने



तन  के  जोगी, मगर  मन  के  लोभी,

फिर  मुरादें  क्यूँ  ये  पूरी  होंगी,

सूफी  संतों  की  करते  है  बातें,

इनके  रवईये  को  दुनिया  ये  जाने,



दिन  के  उजाले  में  निर्धन  को  लूटें,

साईं  संध्या  में  ये  देखो  डूबे,

सुनने  वालों  से  साईं  न  माने,

गाने  वालों  से  साईं  न  माने,



अपने  धर्मों  का  पालन  जो  करते,

साईं  अंग  संग  हैं  उनके  रहते,

गंगा  सागर  सा  तीर्थ  मिलेगा

पिता  माता  में  साईं  समाये,



नाम  जपने  से  साईं  न  माने,

सर  झुकाने  से  साईं  न  माने,


-: आज का साईं सन्देश :- 
साईं ने जैसा कहा,
तस हेमांड कराय |
नई नौकरी छोड़ कर,
शिर्डी में बस जाय ||
मन चंचलता छोड़कर,
आलस दूर भगाय |
आसक्ति इन्द्रिय तज,
बाबा लीला गाय ||

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साँई कैसा तेरा ये विधान

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ॐ सांई राम



 सब दिन एक समान
हे साँई बाबा हे साँई बाबा
 साँई कैसा तेरा ये विधान
न सब दिन एक समान

इक दिन हरिश्च्न्द्र भरे ख़ज़ाना
फिर माँगे कफ़न का दान
न सब दिन एक समान

इक दिन रामचन्द्र चढ़े विमाना
फिर हुआ उनका बनवास
न सब दिन एक समान

इक दिन बालक भयो सयाना
फिर जाकर जरे मसान
न सब दिन एक समान

कहत कबीरा पद निरवाना
जो समझे चतुर सुजान
न सब दिन एक समान

साँई कैसा तेरा ये विधान
न सब दिन एक समान
-: आज का साईं सन्देश :-

साईं लीला श्रवण ही,
सबसे सुगम उपाय ।
मन मंदिर साईं बसा,
मोक्षद्वार खुल जाय ।।

मन लोभी का भटकता,
धन की चिन्ता होय ।
 इसी तरह साईं सदा,
हृदय आपके होय ।।

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धूल तेरे चरणों की बाबा

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ॐ सांई राम




धूल तेरे चरणों की बाबा चन्दन और अबीर बनी
जिसने लगाई निज मस्तक पर उसकी तो तकदीर बनी

हर वस्तु का मोल है जग में इस वस्तु का मोल नहीं
चरणधूल से बढ़कर जग में चीज कोई अनमोल नहीं

पार हुई पत्थर की अहिल्या चरण धूल को पाने से
भिलनी तर गई राम चरण की रज में डुबकी लगाने से

जिन चरणों में गंगा बह्ती उन चरणों का करें हम ध्यान
लाखों पत्थर हीरे बन गये चरण-धूल में कर स्नान

तेरे चरणों की महिमा गाएँ युग-युग से ये वेद पुराण
आके श्रद्धा से हम करलें तुमको लाखों बार प्रणाम

देवता तरसें इस धूली को पावन है कितनी धूली
लाखों देवता ब्रिज में ढूँढें चरण धूल की कुन्ज गली

धूल तेरे चरणों की बाबा चन्दन और अबीर बनी
जिसने लगाई निज मस्तक पर उसकी तो तकदीर बनी
  
 -: आज का साईं सन्देश :-

सब दुष्टन के नाश हित,
और साधू सम्मान ।
भगवत गीता में कहें,
अर्जुन से भगवान ।।

धरा धर्म से हीन हो,
पाप बढ़े संसार ।
थापन हित निज धर्म के,
ईश्वर ले अवतार ।।
 
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साईं मुझे इतना सताया न करो

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ॐ सांई राम




साईं  मुझे  इतना  सताया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,

व्याकुल  मनवा  तुझको  पुकारे,
झलक   दिखाके  छुप  जाया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,

एक  तुम्ही  हो  नाथ  हमारे,
फिर  मैं  जाऊँ  किसके  द्वारे,
दर्शन  पाऊँ  भाग  हमारे,
अब  तो  शरण  में  हूँ  बाबा  तुम्हारे,
मैं  हूँ  तुम्हारी  तुम  पराया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,

हर  पल  साईं  साथ  हमारे,
तेरा  नाम  लेती  रहूँ  सांझ  सकारे,
मेरा  ये  जीवन  तेरे  सहारे,
पावन  शिर्डी  में  अब  तो  बुला  ले,
अपनी  दया  तुम  छुपाया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,

मेरी  ये  अंखियाँ  तुझको  निहारे,
दर्शन  दे  दो  साईं  दासी  पुकारे,
दासी   खड़ी  है  तेरे  द्वारे,
अब  तो  आओ  साईं  नाथ  हमारे,
मन  को  मेरे  तरसाया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,

साईं  मुझे  इतना  सताया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,
व्याकुल  मनवा  तुझको  पुकारे,
झलक   दिखा के  छुप  जाया  न  करो,
दर्शन  दे दो  अब  रुलाया  न  करो,

विशेष आभार :-
साईं आँचल



-: आज का साईं सन्देश :-

ईश्वर के ही रूप हैं,
सन्तन सभी महान ।
प्रगट होय कारज करें,
अवतारी भगवान ।।

तुकाराम व नामदेव,
संत तिवरतीनाथ ।
ज्ञानदेव नरसी हुए,
रामदास, एकनाथ ।।  
  

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