माथा टेक कर श्री साँईं चरणों में
मैं प्रतिदिन करूं यह अरदास
बख्शना मेरे गुनाह किये जो कोई
करें पुत्र से तुलना यह साँईं दास
तेरा अक्स था वो था तेरा साया
जानूं साँईं रूप धर बालक का आया
सेवा भाव में रही कमी जो थोड़ी
हो गया लीन जा ज्योति में समाया
तूने ही दीना और तूने ही लिया छीन
रह गया यह दास ज्यूं जल बिन मीन
अब ना कसर साँईं कोई भी करियों
बालक को बस चरणों में ही धरियों
मैं मूर्ख हूँ पर तू ज्ञान का भरा भंडार
रखियों बच्चे को बना कर गोद का श्रृंगार
साँईं से अरदास
मेरे बाबा सुन लो मन की पुकार को
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को
ठुकराया है दुनिया ने, देकर खूब भरोसा
अब न खाने वाला, इस दुनिया से धोखा
करो कृपा न भूलूँ मैं, तेरे इस उपकार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।
जीवन बन गया बाबा , सचमुच एक पहेली
जाने कब सुलझेगी, मेरे जीवन की पहेली
राह दिखाना भोले, अपने भक्त लाचार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।
तेरे सिवा न कोई है, जिसको कहूँ मैं अपना
लगता होगा पूरा न , जो भी देखा है सपना
तुम्ही जानो कैसे, मिलेगा चैन बेकरार को।
शरण अपनी ले लो, ठुकरा दूँगा संसार को।

This is also a kind of SEWA.
हर भूल को हमरी क्षमा करो
बच्चे है हम साईं क्षमा करो
हर भूल को हमरी क्षमा करो
अज्ञान राह पर चल पड़े
हर भूल को हमरी क्षमा करो
प्राशचित करने हम आ खड़े
हर भूल को हमरी क्षमा करो
आखो से अश्रु बह रहे
हर भूल को हमरी क्षमा करो
कुछ भी न हम कह सके
हर भूल को हमरी क्षमा करो
अब फिर से न दोहराहेगे हम
हर भूल को हमरी क्षमा करो
तेरी भक्ति को हम समझ न पाए
हर भूल को हमरी क्षमा करो
साईं क्षमा करो साईं क्षमा करो
अपने दिल से क्षमा करो
साईंराम साईंराम साईंराम साईंराम
साईंराम साईंराम साईंराम साईंराम
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If God created us, if he is sovereign and if he knows all, why does he hold us responsible?
Answer:
हमारे वाॅट्स एप की सदस्यता हेतु
बाबा जी की कृपा से हमारे चारो वाॅट्स एप ग्रुप 100 सदस्यों से सुसज्जित हो गये है, हम साँईं वार को अपने पाँचवे ग्रुप की शुरुआत बाबा जी की अनुमति से प्रारंभ करेंगे, इच्छुक भक्तजन अपना नाम अपने मोबाइल नंबर के साथ हमारे पास दर्ज करवा सकते है ।
हमारा नंबर है: 9810617373
ॐ श्री साँईं राम जी
आप सभी से अनुरोध है कि कृपया ग्रुप के नियमों का पालन करते हुए इस ग्रुप की मर्यादा को बनाए रखने में हमारी मदद करे।
नियम:-
1 - कृपया किसी भी व्यक्ति विशेष को उसके नाम से संबोधित न करें
2 - किसी भी धर्म के बारे में आपत्ति जनक टिप्पणी न ही करें और न ही पोस्ट फारवर्ड करे
3 - ग्रुप में केवल धार्मिक और आध्यात्मिक पोस्ट ही डाले
4 - एक ही पोस्ट को बार बार पोस्ट न करें जो पोस्ट पहले आ चुकी हैं उसे दोबारा पोस्ट नहीं करे ।
5 - कोई भी ग्रुप का सदस्य किसी अन्य ग्रुप मेम्बर को संपर्क नहीं करेगा, महिला सदस्यों को तो किसी भी हाल में नहीं, आपमें से कोई भी सदस्य महिला सदस्यों को किसी भी स्थिति में पर्सनल इनबॉक्स में सिंगल मेसेज(ॐ साईं राम) भी नही करेगा।
6 - रात्री 11:15 बजे से प्रातः 3:45 बजे तक कोई भी ग्रुप का सदस्य पोस्ट नहीं कर सकता
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8- पर्सनल चैट भी नहीं करे
9- यदि किसी को आप जन्मदिन या शादी की सालगिरह की बधाई भी देना चाहते हैं तो कृपया उन्हें ग्रुप में बधाई ना दे बल्कि उन्हें उनके पर्सनल मैसेज बाक्स में ही बधाई दी जा सकती है |
10- सभी श्री साँईं बहनों से अनुरोध है कि वह अपने प्रोफाइल में अपनी फोटो न लगाए।
11- आप ग्रुप के प्रोफाइल पिक्चर और स्टेट्स को भी नहीं बदल सकते हैं। कृपया भगवान का मजाक ना उड़ाये।
12- ग्रुप में नियमित रूप से बाबा जी के दर्शन के पोस्ट को बिल्कुल भी नहीं गिना जाएगा । बल्कि यदि आप किसी को बाबा जी के दर्शन पोस्ट करते हुए देखे तो आप यह अधिकार उन्हीं के पास सुरक्षित रखने में सहयोग करने की कृपा करें। सभी सदस्य उसी पोस्ट को रिपीट ना करें।
13- कृपया ग्रुप में किसी से भी अपनी निजी जानकारी सांझा ना करें ।
14- कृपया प्रतिदिन में पोस्ट की संख्या सीमित प्रति सदस्य 10 करने में सहयोग करें (साईं वार को प्रति सदस्य 10पोस्ट करने पर प्रतिबन्ध नही है)। इसमें नियमित रूप से सम्मिलित पोस्ट्स जैसे बाबा जी की आज की वाणी, माता-पिता, बहन-बेटियों और बाबा जी के कैलंडर, जीने की राह, वैदिक ज्ञान, श्री साईं सच्चरित्र एवम बाबा के या प्रेरणात्मक विडियो/ऑडियो, बाबा जी के भजन जैसे दैनिक पोस्ट सीमित पोस्ट में सम्मिलित नहीं है । कृपया लाईक पोस्ट भी नहीं डाले ...
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आप सभी से अनुरोध है कि यह बाबा जी का ग्रुप हैं और इस ग्रुप में बाबा जी के पोस्ट के अलावा किसी भी भगवान के पोस्ट भी कर सकते हैं। या फिर किसी को किसी मुसीबत के समय ब्लड की जरूरत होती हैं तो आप वह पोस्ट भी इस ग्रुप में शामिल कर सकते हैं। पर किसी भी प्रकार के अन्य पोस्ट इस ग्रुप में स्वीकार नहीं किए जायेंगे।
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आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से आभार प्रकट करते हुए आप सभी को इस बात से भी अवगत करवाना चाहता हूँ कि आज आपने किसी ग्रुप की सदस्यता ग्रहण नहीं की हैं अपितु एक परिवार के अटूट बंधन में बंधे हैं।
श्री साँई राम जी की कृपा से हम सभी आज संकल्प करते हैं कि इस ग्रुप की मर्यादा और परिवार की अखंडता को हम सर्वप्रथम श्री साँई राम जी के समान ही सम्मान देने के लिए प्रतिबद्ध है ।
ग्रुप मे पोस्ट करने के समय का विशेष ध्यान रहे, प्रातःकाल 03:45 बजे से शेज आरती के बाद रात्रि 11:15 तक ही आप इस ग्रुप में पोस्ट कर सकते है ।
साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला
ना जाने क्या सोच के झोली काँधे पे लटका ली
गंगा में विसर्जित कर दी शिव ने सर्पों की माला रे
साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला
शिव है साईं साईं शिव है बात नहीं ये झूठी
भस्म है ये भोले शंकर की कहते हैं जिसको विभूति
जो मांगोगे दे देगा है शिव सा भोला भाला रे
साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला
साईं तपस्वी साईं योगी साईं है सन्यासी
घर घर में है वास उसी का वो है घाट घाट वासी
शिव शम्भू शम्भू जप ले या जप साईं की माला रे
साईं का रूप बना के आया रे डमरू वाला
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सांई की मन भावन मूरत

सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना
सांई नैनो में झांको तो सदा झलकता प्यारा है
सांई के हाथों में देखो, पलता ये संसार है
अब तो सांई द्वार को छोड़ ओर कहीं ना जाना
सांई नाम की माला का मैं बन जाऊँ एक दाना
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना
सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना
घर में ना आँगन में ये दिल लगता है ना गुलशन में
मित्रों में परिवार में न साथी के साथ मधुबन में
तू ही रहीम तू ही राम तू ही मेरा कान्हा
क्यों जाऊँ मैं मथुरा काशी क्यों जाऊँ मैं मदीना
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना
सांई की मन भावन मूरत मन में है समाई
सांई धुन की एक अजीब दीवानगी सी छायी
मैं हुआ दीवाना ओ लोगो हुआ दीवाना
मैं सांई का दीवाना मैं बाबा का दीवाना

दया करें सब जीव पर,
नम्र रहे बर्ताव |
ऐसा तू यदि कर सके,
नित्यानंद उछाव ||
एक समय इक रोहिला,
शिर्डी में बस जाय |
वह कर्कश आवाज़ में,
रातों भर चिल्लाय ||

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रुपये की भाग - दौड़ मे अपनो को भुला देता है...
और ...
और
जब से जेब बीच में आने लगी है, तब से मनुष्य रुपये के लिए सभी अच्छे - बुरे काम करता है,
और
रुपये की भाग - दौड़ मे अपनो को भुला देता है...
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37

आप सभी को शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37
चावड़ी का समारोह
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शिर्डी वाले सांई बाबा
शिर्डी वाले सांई बाबा तू ही है एक हमारा
जो भी दर पर आता तेरे मिलता उसे सहारा
तेरी लग्न लगाके जोत जलाके भूल गया भूल गया
ओ मैं तो भूल गया भूल गया भूल गया
ओ सांई बाबा सारी दुनिया भूल गया
सुबह शाम शिर्डी वाले मैं फेरूँ तेरी माला
तुझमें मन्दिर तुझमें मस्जिद तुझमें ही गुरुद्वारा
तू है सारे जग का मालिक तू सारे जग का रखवाला
तेरी भक्ति में ओ सांई भूल गया भूल गया भूल गया रे
ओ मैं तो भूल गया भूल गया भूल गया
ओ सांई बाबा सारी दुनिया गया
अंधियारे को दूर करे पानी से दीप जलाये
तेरे दर पे जो आये उसे सच्ची राह दिखाये
उसको सब कुछ भी मिल जाये जो तुझमें खो जाये
शिरडी वाले सांई बाबा दुनिया भूल गया
भूल गया भूल गया मैं
ओ मैं तो भूल गया भूल गया भूल गया
ओ सांई बाबा सारी दुनिया भूल गया
-: आज का साईं सन्देश :-
चीख चीख अल्लाह का,
विनती साईं से करें,
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गुरु अरदास
जिथ बिठलावे तित ही बैठूँ
जो पहरावे सो ही पहरूँ
मेरी उनकी प्रीत पुरानी
बेचे तो बिक जाऊँ
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
गुरु मेरा देव अकाल अभेऊ
सर्व पूज चरण गुरु सेऊ
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
गुरु का दर्शन, देख देख जीवा
गुरु के चरण, धोये धोये पीवाँ
गुरु बिन अवर, नहीं में थाओं
आन दिन जपौं, गुरु गुरु नाओं
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
गुरु मेरा ज्ञान, गुरु ही दे ध्यान
गुरु गोपाल, मूरत भगवान
गुरु मेरी पूजा
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
ऐसे गुरु को, बल बल जाइये
आप मुकदे, मोहे तारे
गुरु की शरण, रहूँ कर जोड़
गुरु बिना मैं, न ही होर
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
गुरु बहुत तारे भवपार
गुरु सेवा जम ते छुटकारे
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
अंधकार में गुरु मन्त्र उजारा
गुरु के संग सगल मिस्तारा
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
न मैं सोणी, मैं किसदा मान करिसा
चारो चुक्का मेरियां, चिकड़ भारियां
मै किदे किदे मल मल दोस्सां
एक साबुन थोड़ा, उतों मैल घनेरी
मैं किदे किदे कपडे धोसां
बुलेशा मुर्शद जे मैं न मिलेयो मैं बैठ किनारे रोसां
गुरु पूरा पाइये बड़भागी
गुरु की सेवा देख न लागी
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
गुरु का शब्द न मिटे कोई
गुरु नानक नानक हर सोयी
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविन्द गुरु मेरा पार ब्रह्म गुरु भगवंत
This is also a kind of SEWA.
आई साईं की पालकी
सारे रस्ते पे फूल बिछाओ, लाओ इत्र गुलाल छिड़काओ
लगाओ पालकी में कान्धा लगाओ, रे लगाओ रे लगाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी
आओ पालकी को फूलों से सजाओ रे सजाओ रे सजाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी
साईं बाबा की बोलो जैकार, भक्तों पे अपने करते उपकार
आओ बाबा का आशीष पाओ रे पाओ रे पाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी
जो भी पालकी में कान्धा लगाए, वो तो रोज़ दिवाली मनाये
आओ पालकी को घर घर ले जाओ रे आओ रे आओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी
सारे रस्ते पे फूल बिछाओ, लाओ इत्र गुलाल छिड़काओ
लगाओ पालकी में कान्धा लगाओ, रे लगाओ रे लगाओ
आई साईं की पालकी, मेरे बाबा की पालकी
This is also a kind of SEWA.
सांई दया करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
श्रद्धा और सबुरी सांई
सब का मालिक एक ही सांई
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
मैं निर्धन हूँ मैं निर्बल हूँ
दाता सांई मैं भिक्षुक हूँ
सांई शक्ति देना मेरे सांई कृपा करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
मोहमाया से दूर ही रखना
पाप करम से दूर ही रखना
भजन चरण शरण में रखना
मेरे सांई कृपा करना
सांई दया करना मेरे सांई कृपा करना
This is also a kind of SEWA.
कोई नहीं है जग में मेरा
वो पत्थर भी बन गया पारस,
साई की है महिमा इतनी न्यारी
साई की है महिमा इतनी न्यारी
जिस पर नाज़ करती है यह दुनिया सारी
तेरी कृपा की है अब आशा
तेरे रूप को देखने की है अभिलाषा
कब हमारा मनोरत सिद्ध होगा
कब इन आखो को तेरा दर्श होगा
तुझ में है यह जग समाया
तेरे दर से न कोई खाली आया
सबके ह्रदय की बात तू जाने
सबके मन में तू विराजे
कण कण में तेरा वास है
तेरी करुना का न कोई पार है
तेरी महिमा है इतनी न्यारी
जिसपे नाज़ करती है यह दुनिया सारी.......
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 38
बाबा की हंड़ी, नानासाहेब द्अघारा देव-मूर्ति की उपेक्षा, नैवेघ वितरण, छाँछ का प्रसाद ।
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गत अध्याय में चावड़ी के समारोह का वर्णन किया गया है । अब इस अध्याया में बाबा की हंडी तथा कुछ अन्य विषयों का वर्णन होगा ।
प्रस्तावना
............
हे सदगुरु साई । तुम धन्य हो । हम तुम्हें नमन करते है । तुमने विश्व को सुख पहुँचाय और भक्तों का कल्याण किया । तुम उदार हृदय हो । जो भक्तगण तुम्हारे अभय चरण-कमलों में अपने को समर्पित कर देते है, तुम उनकी सदैव रक्षा एवं उद्घार किया करते हो । भक्तों के कल्याण और परित्राण के निमित्त ही तुम अवतार लेते हो । ब्रहम के साँचे में शुद्घ आत्मारुपी द्रव्य ढाला गया और उसमें से ढलकर जो मूर्ति निकली, वही सन्तों के सन्त श्री साईबाबा है । साई स्वयं ही आत्माराम और चिरआनन्द धाम है । इस जीवन के समस्त कार्यों को नश्वर जानकर उन्होंने भक्तों को निष्काम और मुक्त किया ।
बाबा की हंड़ी
.............
मानव धर्म-शास्त्र में भिन्न-भिन्न युगों के लिये भिन्न-भिन्न साधनाओं का उन्नेख किया गया है । सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्घापर में यज्ञ और कलियुग में दान का विशेष माहात्म्य है । सर्व प्रकार के दानों में अन्नदान श्रेष्ठ है । जब मध्याहृ के समय हमें भोजन प्राप्त नहीं होता, तब हम विचलित हो जाते है । ऐसी ही स्थिति अन्य प्राणियों की अनुभव कर जो किसी भिक्षुक या भूखे को भोजन देता है, वही श्रेष्ठ दानी है । तैत्तिरीयोपनिषद् में लिखा है कि अन्न ही ब्रहमा है और उसीसे सब प्राणियों की उत्पत्ति होती है तथा उससे ही वे जीवित रहते है और मृत्यु के उपरांत उसी में लय भी हो जाते है । जब कोई अतिथि दोपहर के समय अपने घर आता है तो हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम उसका अभिन्नदन कर उसे भोजन करावे । अन्य दान जैसे-धन, भूमि और वस्त्र इत्यादि देने में तो पात्रता का विचार करना पड़ता है, परन्तु अन्न के लिये विशेष सोचविचार की आवश्यकता नहीं है । दोपहर के समय कोई भी अपने द्घार पर आवे, उसे शीघ्रभोजन कराना हमारा परम कर्त्व्य है । प्रथमतः लूले, लंगड़े, अन्धे या रुग्ण भिखारियों को, फिर उन्हें, जो हाथ पैर से स्वस्थ है और उनसभी के बाद अपने संबन्धियों को भोजन कराना चाहिये । अन्य सभी की अपेक्षा पंगुओं को भोजन कराने का मह्त्व अधिक है । अन्नदान के बिना अन्य सब प्रकार के दान वैसे ही अपूर्ण है, जैसे कि चन्द्रमा बिना तारे, पदक बिना हार, कलश बिना मन्दिर, कमलरहित तलाब, भक्तिरहित, भजन, सिन्दूररहित सुहागिन, मधुर स्वरविहीन गायन, नमक बिना पकवान । जिस प्रकार अन्य भोज्य पदार्थों में दाल उत्तम समझी जाती है, उसी प्रकार समस्त दानों में अन्नदान श्रेष्ठ है । अब देखें कि बाबा किस प्रकार भोजन तैयार कराकर उसका वितरण किया करते थे ।
हम पहले ही उल्लेख कर चुके है कि बाबा अल्पाहारी थे और वे थोड़ा बहुत जो कुछ भी खाते थे, वह उन्हें केवल दो गृहों से ही भिक्षा में उपलब्ध हो जाया करता था । परन्तु जब उनके मन में सभी भक्तों को भोजन कराने की इच्छा होती तो प्रारम्भ से लेकर अन्त तक संपूर्ण व्यवस्था वे स्वयं किया करते थे । वे किसी पर निर्भर नहीं रहते थे और न ही किसी को इस संबंध में कष्ट ही दिया करते थे । प्रथमतः वे स्वयं बाजार जाकर सब वस्तुएं – अनाज, आटा, नमक, मिर्ची, जीरा खोपरा और अन्य मसाले आदि वस्तुएँ नगद दाम देकर खरीद लाया करते थे । यहाँ तक कि पीसने का कार्य भी वे स्वयं ही किया करते थे । मसजिद के आँगन में ही एक भट्टी बनाकर उसमें अग्नि प्रज्वलित करके हंडी के ठीक नाप से पानी भर देते थे । हंडी दो प्रकार की थी – एक छोटी और दूसरी बड़ी । एक में सौ और दूसरी में पाँच सौ व्यक्तियों का भोजन तैयार हो सकता था । कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे । कभी-कभी दाल और मुटकुले भी बना लेते थे । पत्थर की सिल पर महीन मसाला पीस कर हंडी में डाल देते थे । भोजन रुचिकर बने, इसका वे भरसक प्रयत्न किया करते थे । ज्वार के आटे को पानी में उबाल कर उसमें छाँछ मिलाकर अंबिल (आमर्टी) बनाते और भोजन के साथ सब भक्तों को समान मात्रा में बाँट देते थे । भोजन ठीक बन रहा है या नहीं, यह जानने के लिये वे अपनी कफनी की बाँहें ऊपर चढ़ाकर निर्भय हो उतबलती हंडी में हाथ डाल देते और उसे चारों ओर घुमाया करते थे । ऐसा करने पर भी उनके हाथ पर न कोई जलन का चिन्ह और न चेहरे पर ही कोई व्यथा की रेखा प्रतीत हुआ करती थी । जब पूर्ण भोजन तैयार हो जाता, तब वे मसजिद सम बर्तन मँगाकर मौलवी से फातिहा पढ़ने को कहते थे, फिर वे म्हालसापति तथा तात्या पाटील के प्रसाद का भाग पृथक् रखकर शेष भोजन गरीब और अनाथ लोगों को खिलाकर उन्हें तृप्त करते थे । सचमुच वे लोग धन्य थे । कितने भाग्यशाली थे वे, जिन्हें बाबा के हाथ का बना और परोसा हुआ भोजन खाने को प्राप्त हुआ ।
यहाँ कोई यह शंका कर सकता है कि क्या वे शाकाहारी और मांसाहारी भोज्य पदार्थों का प्रसाद सभी को बाँटा करते थे । इसका उत्तर बिलकुल सीधा और सरल है । जो लोग मांसाहारी थे, उन्हें हण्डी में से दिया जाता था तथा शाकाहारियों को उसका स्पर्श तक न होने देते थे । न कभी उन्होंने किसी को मांसाहार का प्रोत्साहन ही दिया और न ही उनकी आंतरिक इच्छा थी कि किसी को इसके सेवन की आदत लग जाये । यह एक अति पुरातन अनुभूत नियम है कि जब गुरुदेव प्रसाद वितरण कर रहे हो, तभी यदि शिष्य उसके ग्रहण करने में शंकित हो जाय तो उसका अधःपतन हो जाता है । यह अनुभव करने के लिये कि शिष्य गण इस नियम का किस अंश तक पालन करते है, वे कभी-कभी परीक्षा भी ले लिया करते थे । उदाहरँणार्थ एक एकादशी के दिन उन्होंने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ मांस खरीद लाने को कहा । दादा केलकर पूरे कर्मकांडी थे और प्रायः सभी नियमों का जीवन में पालन किया करते थे । उनकी यह दृढ़ भावना थी कि द्रव्य, अन्न और वस्त्र इत्यादि गुरु को भेंट करना पर्याप्त नहीं है । केवल उनकी आज्ञा ही शीघ्र कार्यान्वित करने से वे प्रसन्न हो जाते है । यही उनकी दक्षिणा है । दादा शीघ्र कपडे पहिन कर एक थैला लेकर बाजार जाने के लिये उघत हो गये । तब बाबा ने उन्हें लौटा लिया और कहा कि तुम न जाओ, अन्य किसी को भेज दो । दादा ने अपने नौकर पाण्डू को इस कार्य के निमित्त भेजा । उसको जाते देखकर बाबा ने उसे भी वापस बुलाने को कहकर यह कार्यक्रम स्थगित कर दिया ।
ऐसे ही एक अन्य अवसर पर उन्होंने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है । दादा ने यों ही मुंह देखी कह दिया कि अच्छा है । तब वे कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखों से ही देखा है और न जिहा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है । थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो । बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन में डालकर बोले – थोड़ासा इसमें से निकालो और अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो । जब माँ का सच्चा प्रेम बच्चे पर उमड़ आता है, तब माँ उसे चिमटी भरती है, परन्तु उसका चिल्लाना या रोना देखकर वह उसे अपने हृदय से लगाती है । इसी प्रकार बाबा ने सात्विक मातृप्रेम के वश हो दादा का इस प्रकार हाथ पकड़ा । यथार्थ में कोई भी सन्त या गुरु कभी भी अपने कर्मकांडी शिष्य को वर्जित भोज्य के लिये आग्रह करके अपनी अपकीर्ति कराना पसन्द न करेगा ।
इस प्रकार यह हंडी का कार्यक्रम सन् 1910 तक चला और फिर स्थगित हो गया । जैसा पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है, दासगणू ने अपने कीर्तन द्घारा समस्त बम्बई प्रांत में बाबा की अधिक कीर्ति फैलई । फलतः इस प्रान्त से लोगों के झुंड के झुंड शिरडी को आने लगे और थोड़े ही दिनों में शिरडी पवित्र तीर्थ-क्षेत्र बन गया । भक्तगण बाबा को नैवेघ अर्पित करने के लिये नाना प्रकारके स्वादिष्ट पदार्थ लाते थे, जो इतनी अधिक मात्रा में एकत्र हो जाता था कि फकीरों और भिखारियों को सन्तोषपूर्वक भोजन कराने पर भी बच जाता था । नैवेघ वितरण करने की विधि का वर्णन करने से पूर्व हम नानासाहेब चाँदोरकर की उस कथा का वर्णन करेंगे, जो स्थानीय देवी-देवताओं और मूर्तियों के प्रति बाबा की सम्मान-भावना की घोतक है ।
नानासाहेब द्घारा देव-मूर्ति की उपेक्षा
....................................
कुछ व्यक्ति अपनी कल्पना के अनुसार बाबा को ब्राहमण तथा कुछ उन्हें यवन समझा करते थे, परन्तु वास्तव में उनकी कोई जाति न थी । उनकी और ईश्वर की केवल एक जाति थी । कोई भी निश्चयपूर्वक यह नहीं जानता कि वे किस कुल में जनमें और उनके मातापिता कौन थे । फिर उन्हें हिन्दू या यवन कैसे घोषित किया जा सकता है । यदि वे यवन होते तो मसजिद में सदैव धूनी और तुलसी वृन्दावन ही क्यों लागते और शंख, घण्टे तथा अन्य संगीत वाघ क्यों बजने देते । हिन्दुओं की विविध प्रकार की पूजाओं को क्यों स्वीकार करते । यदि सचमुच यवन होते तो उनके कान क्यों छिदे होते तथा वे हिन्दू मन्दिरों का स्वयं जीर्णोद्घार क्यों करवाते । उन्होंने हिन्दुओं की मूर्तियों तथा देवी-देवताओ की जरा सी उपेक्षा भी कभी सहन नहीं की ।
एक बार नानासाहेब चाँदोरक अपने साढू (साली के पति) श्री बिनीवले के साथ शिरडी आये । जब वे मसजिद में पहुँचे, बाबा वार्तालाप करते हुए अनायास ही क्रोधित होकर कहने लगे कि तुम दीर्घकाल से मेरे सान्ध्य में हो, फिर भी ऐसा आचरण क्यों करते हो । नानासाहेब प्रथमतः इन शब्दों का कुछ भी अर्थ न समझ सके । अतः उन्होंने अपना अपराध समझाने की प्रार्थना की । प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा कि तुम कब कोपरगाँव आये और फिर वहाँ से कैसे शिरडी आ पहुँचे । तब नानासाहेब को अपनी भूल तुरन्त ही ज्ञात हो गयी । उनका यह नियम था कि शिरडी आने से पूर्व वे कोपरगाँव में गोदावरी के तट पर स्थित श्री दत्त का पूजन किया करते थे । परन्तु रिश्तेदार के दत-उपासक होने पर भी इस बार विलम्ब होने के भय से उन्होंने उनको भी दत्त मंदिर में जाने से हतोत्साहित किया और वे दोनों सीधे शिरडी चले आये थे । अपना दोष स्वीकार कर उन्होंने कहा कि गोदावरी स्नान करते समय पैर में एक बड़ा काँटा चुभ जाने के कारण अधिक कष्ट हो गया था । बाबा ने काह कि यह तो बहुत छोटासा दंड था और उन्हें भविष्य में ऐसे आचरण के लिये सदैव सावधान रहने की चेतावनी दी ।
नैवेघ-वितरण
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अब हम नैवेघ-वितरण का वर्णन करेंगे । आरती समाप्त होने पर बाबा से आर्शीवाद तथा उदी प्राप्त कर जब भक्तगण अपने-अपने घर चले जाते, तब बाबा परदे के पीछे प्रवेश कर निम्बर के सहारे पीठ टेककर भोजन के लिये आसन ग्रहण करते थे । भक्तों की दो पंक्तियाँ उनके समीप बैठा करती थी । भक्तगण नाना प्रकार के नैवेघ, पीरी, माण्डे, पेड़ा बर्फी, बांसुदीउपमा (सांजा) अम्बे मोहर (भात) इत्यादि थाली में सजा-सजाकर लाते और जब तक वे नैवेघ स्वीकार न कर लेते, तब तक भक्तगण बाहर ही प्रतीक्षा किया करते थे । समस्त नैवेघ एकत्रित कर दिया जाता, तब वे स्वयं ही भगवान को नैवेघ अर्पण कर स्वयं ग्रहण करते थे । उसमें से कुछ भाग बाहर प्रतीक्षा करने वालों को देकर शेष भीतर बैठे हुए भक्त पा लिया करते थे । जब बाबासबके मध्य में आ विराजते, तब दोनों पंक्तियों में बैठे हुए भक्त तृप्त होकर भोजन किया करते थे । बाबा प्रायः शामा और निमोणकर से भक्तों को अच्छी तरह भोजन कराने और प्रत्येक की आवश्यकता का सावधानीपूर्वक ध्यान रखने को कहते थे । वे दोनों भी इस कार्य को बड़ी लगन और हर्ष से करते थे । इस प्रकार प्राप्त प्रत्येक ग्रास भक्तों को पोषक और सन्तोषदायक होता था । कितना मधुर, पवित्र, प्रेमरसपूर्ण भोजन था वह । सदा मांगलिक और पवित्र ।
छाँछ (मठ्ठा) का प्रसाद
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इस सत्संग में बैठकर एक दिन जब हेमाडपंत पूर्णतः भोजन कर चुके, तब बाबा ने उन्हें एक प्याला छाँछ पीने को दिया । उसके श्वेत रंग से वे प्रसन्न तो हुए, परन्तु उदर में जरा भी गुंजाइश न होने के कारण उन्होंने केवल एक घूँट ही पिया । उनका यह उपेक्षात्मक व्यवहार देखकर बाबा ने कहा कि सब पी जाओ । ऐसा सुअवसर अब कभी न पाओगे । तब उन्होंने पूरी छाँछ पी ली, किन्तु उन्हे बाबा के सांकेतिक वचनों का मर्म शीघ्र ही विदित हो गया, क्योंकि इस घटना के थोड़े दिनों के पश्चात् ही बाबा समाधिस्थ हो गये ।
पाठकों । अब हमें अवश्य ही हेमाडपंत के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये, क्योंकि उन्होंने तो छाँछ का प्याला पिया, परन्तु वे हमारे लिये यथेष्ठ मात्रा में श्री साई-लीला रुपी अमृत दे गये । आओ, हम उस अमृत के प्याले पर प्याले पीकर संतुष्ट और सुखी हो जाये ।
नाम जपने से साईं न माने
भावें सौ सौ जुम्मा पढ़ आइये
भावें सौ सौ गोते खाइये,
गायाँ गायाँ गल मुकदी नइयों
भावें सौ सौ पिंड भर आइये,
वे बुल्लेशाह गल ताइयों मुकदी
जदों मैं नु दिलों गवाईये ,
नाम जपने से साईं न माने,
सर झुकाने से साईं न माने,
दिल दुखाया जो तुमने किसी का
शिर्डी जाने से साईं न माने,
नाम जपने से साईं न माने,
सर झुकाने से साईं न माने,
मन में कुछ है और कुछ है ज़ुबां पे,
कैसा धोखा ये दुनिया को देते,
ऐसे झूठों से साईं न माने,
मन के कालों से साईं न माने,
साईं बाबा की जपते है माला,
करते नित ही बड़ा ये घोटाला
साईं सेवा का पीटें ढीनडोरा
ऐसे लोगों को साईं जी जाने
तन के जोगी, मगर मन के लोभी,
फिर मुरादें क्यूँ ये पूरी होंगी,
सूफी संतों की करते है बातें,
इनके रवईये को दुनिया ये जाने,
दिन के उजाले में निर्धन को लूटें,
साईं संध्या में ये देखो डूबे,
सुनने वालों से साईं न माने,
गाने वालों से साईं न माने,
अपने धर्मों का पालन जो करते,
साईं अंग संग हैं उनके रहते,
गंगा सागर सा तीर्थ मिलेगा
पिता माता में साईं समाये,
नाम जपने से साईं न माने,
सर झुकाने से साईं न माने,

साँई कैसा तेरा ये विधान
हे साँई बाबा हे साँई बाबा
न सब दिन एक समान
इक दिन हरिश्च्न्द्र भरे ख़ज़ाना
फिर माँगे कफ़न का दान
न सब दिन एक समान
इक दिन रामचन्द्र चढ़े विमाना
फिर हुआ उनका बनवास
न सब दिन एक समान
इक दिन बालक भयो सयाना
फिर जाकर जरे मसान
न सब दिन एक समान
कहत कबीरा पद निरवाना
जो समझे चतुर सुजान
न सब दिन एक समान
साँई कैसा तेरा ये विधान
न सब दिन एक समान
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धूल तेरे चरणों की बाबा
धूल तेरे चरणों की बाबा चन्दन और अबीर बनी
जिसने लगाई निज मस्तक पर उसकी तो तकदीर बनी
चरणधूल से बढ़कर जग में चीज कोई अनमोल नहीं
पार हुई पत्थर की अहिल्या चरण धूल को पाने से
भिलनी तर गई राम चरण की रज में डुबकी लगाने से
जिन चरणों में गंगा बह्ती उन चरणों का करें हम ध्यान
लाखों पत्थर हीरे बन गये चरण-धूल में कर स्नान
तेरे चरणों की महिमा गाएँ युग-युग से ये वेद पुराण
आके श्रद्धा से हम करलें तुमको लाखों बार प्रणाम
देवता तरसें इस धूली को पावन है कितनी धूली
लाखों देवता ब्रिज में ढूँढें चरण धूल की कुन्ज गली
धूल तेरे चरणों की बाबा चन्दन और अबीर बनी
जिसने लगाई निज मस्तक पर उसकी तो तकदीर बनी
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साईं मुझे इतना सताया न करो
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