ॐ सांँई राम जी
इक ना मिलता मुझे साँई
हर मुश्किल थी जैसे खाई
अब हर मुश्किल से लड़ता हूँ
बस साँई साँई ही करता हूँ
बिन साँई नाम के जग सूना हैं
साँई संग हर सुख दूना हैं
कई फिरते शिर्डी में सवाली हैं
मेरा हर दिन ईद रात दिवाली हैं
पतझड़ का हो अब क्यों डर
जब साँई ही बगिया का माली हैं
हर पल आँखे प्यासी दर्शन की
साँई चरणों में अमृत की प्याली हैं
इन्द्रधनुष के रंग ना चाहूँ मैं कभी
जब हर ओर छाई साँई की लाली हैं
सुन लो गौर से हे कठोर जग वालों
ना बोलो बुरे बोल गर जुबान काली हैं
मीठे बोलो बोल सदा तुम साँई नाम के
इसी से कानो मे मिश्री घुलने वाली हैं।