कल हमने पढ़ा था.. अम्मीर शक्कर की प्राण रक्षा श्री साईं लीलाएं - सबका रखवाला साईं
साईं बाबा लोगों को उपदेश भी देते और उनसे विभिन्न धर्मग्रंथों का अध्ययन भीकरवाते| साईं बाबा के कहने पर काका साहब दीक्षित दिन में एकनामी भागवत और रात मेंभावार्थ रामायण पढ़ते थे| उसका यह नियम और समय कभी नहीं चूकता था|एक दिनकाका साहब दीक्षित जब रामायण पाठ कर रहे थे तब हेमाडंपत भी वहां पर उपस्थित था| वहां उपस्थित सभी श्रोता पूरी तन्मयता के साथ प्रसंग का श्रवण कर रहे थे| हेमाडंपतभी प्रसंग सुनने में पूरी तरह से मग्न थे|लेकिन तब ही न जाने कहां से एकबिच्छू आकर हेमाडंपत पर आकर गिरा और उनके दायें कंधे पर बैठ गया| हेमाडंपत को इसकापता न चला| कुछ देर बाद जब बाबा की नजर अचानक हेमाडंपत के कंधे पर पड़ी तो उन्होंनेदेखा कि बिच्छू उनके कंधे पर मरने जैसी अवस्था में पड़ा था| लेकिन बाबा ने बड़ीशांति के साथ बिच्छू को धोती के दोनों किनारे मिलाकर उसमें लपेटा और दूर जाकर छोड़आये| बाबा की प्रेरणा से ही वह बिच्छू से बचे और कथा भी बिना बाधा के चलतीरही|इसी तरह एक बार शाम के समय काका साहब दीक्षित बाड़े के ऊपरी हिस्से मेंबैठे हुए थे| उसी समय एक सांप खिड़की की चौखट से छोटे-से छेद में से होकर अंदर आकरकुंडली मारकर बैठ गया| अंधेरे में तो वह दिखाई नहीं दिया, लेकिन लालटेन की रोशनीमें वह स्पष्ट दिखाई पड़ा| वह बैठा हुआ फन हिला रहा था|तभी कुछ लोग लाठीलेकर वहां दौड़े| उसी हड़बड़ाहट में वह सांप वहां से जान बचाने के लिए उसी छेद मेंसे निकलकर भाग गया| लोगों ने उसके भाग जाने पर चैन की सांस ली| जब सांप भाग गया तोवहां उपस्थित लोग आपस में वाद-विवाद करने लगे| एक भक्त मुक्ताराम का कहना था - "किअच्छा हुआ जो एक जीव के प्राण जाने से बच गए|" लेकिन हेमाडंपत को गुस्सा आ गया औरवे मुक्ताराम का प्रतिरोध करते हुए बोले - "ऐसे खतरनाक जीवों के बारे में दयादिखायेंगे तो यह दुनिया कैसे चलेगी? सांप को तो मार डालना ही अच्छा था|" इस बारेमें दोनों में बहुत देर तक बहस होती रही| दोनों ही अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहे| आखिर में जब रात काफी हो गयी तो, तब कहीं जाकर बहस रुकी| सब लोग सोने के लिये चलेगये|अगले दिन प्रात: जब सब लोग बाबा के दर्शन करने के लिए मस्जिद में गये, तब बाबा ने पूछा - "कल रात दीक्षित के घर में क्या बहस हो रही थी?" तब हेमाडंपतने बाबा को सारी बात बताते हुए पूछा कि सांप को मारा जाये या नहीं? तब बाबाअपना निर्णय सुनाते हुए बोले - "सभी जीवों में ईश्वर का वास है| वह जीव चाहे सांपहो या बिच्छू| ईश्वर ही सबके नियंता हैं| ईश्वर की इच्छा के बिना कोई भी किसी कोहानि नहीं पहुंचा सकता| इसलिए सबसे प्यार करना चाहिए| सारा संसार ईश्वर के आधीन हैऔर इस संसार में रहनेवाले किसी का भी अलग अस्तित्व नहीं है| इसलिए सब जीवों पर दयाकरनी चाहिए| जहां तक संभव हो हिंसा न करें| हिंसा से क्रूरता बढ़ती है| धैर्य रखनाचाहिए| अहिंसा में शांति और संतोष होता है| इसलिए शत्रुता त्यागकर शांत मन से जीवनजीना चाहिए| ईश्वर की सबका रक्षक है|" बाबा के इस अनमोल उपदेश को हेमाडंपत कभी नहींभूले| बाबा ने हेमाडंपत ही नहीं अपने सम्पर्क में आये हजारों लोगों का जीवन सुधारा| वे सन्मार्ग पर चलने लगे|
कल चर्चा करेंगे... योगी का आत्मसमर्पण
ॐ सांई राम
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।