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यह जो सिर चढ़कर बोलता है, गुरू कृपा का ही असर डोलता है

यह जो सिर चढ़कर बोलता है, गुरू कृपा का ही असर डोलता है


यह जो सिर चढ़कर बोलता है
गुरू कृपा का ही असर डोलता है
कब से अनजान था खुद से ही मैं
अब तेरे भक्तों में ढूंढता खुद को मैं

कभी गरूर था अपनी कामयाबी पर
जबकि कामयाब बिल्कुल भी ना था
आज जब भरपूर कामयाबी पाई है 
तो पता चला कि इसके पीछे गुरू परछाई हैं

अपने आप से सीधा सवाल करता हूँ
क्यों इतराता अपनी शख्सियत पर हैं
ऐसा क्या रूतबा हासिल कर लिया हैं
गुरू ने जिसे परवान नहीं किया हैं

अगर जिंदगी में कुछ हासिल करने की हैं तमन्ना
तो ना किसी से कभी भी कुछ उम्मीद करना
हासिल तो मंजिल एक दिन हो ही जाएगी
दिल को ठेस पहुंचने की संभावना घट जाएगी

ना मैं मुझ में रहूं और ना तू तुझ में रहे
आ गले लग जाए कोई गम ना रहे
कम तो तुम भी कुछ मुझ से ना थे कभी
मुझमें भी तुम से ज्यादा होने की आस ना रहे

क्युं ना कुछ सीख पंछियों से भी ले लू
मंदिर पर बैठ राम और गुरूद्वारे पर बैठ वाहेगुरू बोलू
इरादे बुलंद रहे आसमान को छू लेने के
धर्म के नाम पर कभी भी ना मैं डोलू

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